॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--पहला अध्याय..(पोस्ट०६)
श्रीसूतजीसे शौनकादि ऋषियों का प्रश्न
आपन्नः संसृतिं घोरां यन्नाम विवशो गृणन् ।
ततः सद्यो विमुच्येत यद् बिभेति स्वयं भयम् ॥ १४ ॥
यत्पादसंश्रयाः सूत मुनयः प्रशमायनाः ।
सद्यः पुनन्त्युपस्पृष्टाः स्वर्धुन्यापोऽनुसेवया ॥ १५ ॥
को वा भगवतस्तस्य पुण्यश्लोकेड्यकर्मणः ।
शुद्धिकामो न श्रृणुयाद् यशः कलिमलापहम् ॥ १६ ॥
तस्य कर्माण्युदाराणि परिगीतानि सूरिभिः ।
ब्रूहि नः श्रद्दधानानां लीलया दधतः कलाः ॥ १७ ॥
यह जीव जन्म-मृत्यु के घोर चक्रमें पड़ा हुआ है—इस स्थिति में भी यदि वह कभी भगवान् के मङ्गलमय नाम का उच्चारण कर ले तो उसी क्षण उससे मुक्त हो जाय; क्योंकि स्वयं भय भी भगवान् से डरता रहता है ॥ १४ ॥ सूतजी ! परम विरक्त और परम शान्त मुनिजन भगवान् के श्रीचरणोंकी शरणमें ही रहते हैं, अतएव उनके स्पर्शमात्र से संसार के जीव तुरन्त पवित्र हो जाते हैं। इधर गङ्गाजी के जलका बहुत दिनों- तक सेवन किया जाय, तब कहीं पवित्रता प्राप्त होती है ॥ १५ ॥ ऐसे पुण्यात्मा भक्त जिनकी लीलाओंका गान करते रहते हैं, उन भगवान् का कलिमलहारी पवित्र यश भला आत्मशुद्धि की इच्छा- वाला ऐसा कौन मनुष्य होगा, जो श्रवण न करे ॥ १६ ॥ वे लीलासे ही अवतार धारण करते हैं। नारदादि महात्माओं ने उनके उदार कर्मोंका गान किया है। हम श्रद्धालुओं के प्रति आप उनका वर्णन कीजिये ॥ १७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएं🪷🌸🥀जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण