रविवार, 25 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - चौथा अध्याय..(पोस्ट..०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--चौथा अध्याय..(पोस्ट ०१)

महर्षि व्यासका असन्तोष

व्यास उवाच ।

इति ब्रुवाणं संस्तूय मुनीनां दीर्घसत्रिणाम् ।
वृद्धः कुलपतिः सूतं बह्‌वृचः शौनकोऽब्रवीत् ॥ १ ॥

शौनक उवाच ।

सूत सूत महाभाग वद नो वदतां वर ।
कथां भागवतीं पुण्यां यदाह भगवान् शुकः ॥ २ ॥
कस्मिन् युगे प्रवृत्तेयं स्थाने वा केन हेतुना ।
कुतः सञ्चोदितः कृष्णः कृतवान् संहितां मुनिः ॥ ३ ॥
तस्य पुत्रो महायोगी समदृङ् निर्विकल्पकः ।
एकान्तमतिः उन्निद्रो गूढो मूढ इवेयते ॥ ४ ॥

व्यासजी कहते हैं—उस दीर्घकालीन सत्र में सम्मिलित हुए मुनियों में विद्या-वयोवृद्ध कुलपति ऋग्वेदी शौनकजी ने सूतजीकी पूर्वोक्त बात सुनकर उनकी प्रशंसा की और कहा ॥ १ ॥
शौनकजी बोले—सूतजी ! आप वक्ताओं में श्रेष्ठ हैं तथा बड़े भाग्यशाली हैं। जो कथा भगवान्‌ श्रीशुकदेवजी ने कही थी, वही भगवान्‌ की पुण्यमयी कथा कृपा करके आप हमें सुनाइये ॥ २ ॥ वह कथा किस युगमें, किस स्थानपर और किस कारणसे हुई थी ? मुनिवर श्रीकृष्णद्वैपायनने किसकी प्रेरणा से इस परमहंसों की संहिताका निर्माण किया था ? ॥ ३ ॥ उनके पुत्र शुकदेवजी बड़े योगी, समदर्शी, भेदभाव-रहित, संसार-निद्रा से जगे एवं निरन्तर एकमात्र परमात्मामें ही स्थित रहते हैं। वे छिपे रहनेके कारण मूढ़-से प्रतीत होते हैं ॥ ४ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🍂💟🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. 🙏🚩🦠🌼🌿हे गोविन्द 🌿🌸🌼🦠🚩🙏🧎‍♂️

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