॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--पहला अध्याय..(पोस्ट०३)
मङ्गलाचरण
निगमकल्पतरोर्गलितं फलं ।
शुकमुखाद् अमृतद्रवसंयुतम् ।
पिबत भागवतं रसमालयं ।
मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः ॥ ३ ॥
रसके मर्मज्ञ भक्तजन !
यह श्रीमद्भागवत वेदरूप कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है । श्रीशुकदेवरूप तोते के [*] मुखका सम्बन्ध हो जानेसे यह परमानन्दमयी सुधासे परिपूर्ण हो गया है । इस फलमें छिलका, गुठली आदि त्याज्य अंश तनिक भी नहीं है। यह मूर्तिमान् रस है । जब तक शरीरमें चेतना रहे, तबतक इस दिव्य भगवद्-रसका निरन्तर बार-बार पान करते रहो । यह पृथ्वीपर ही सुलभ है ॥
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[*] यह प्रसिद्ध है कि तोते का काटा हुआ फल अधिक मीठा होता है
हरिः ॐ तत्सत्
शेष आगामी पोस्ट में --
🪷🥀🪷जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण
🙏🚩🦠🌼🍁हे माधव🌿🌺🪴🙏🧎♂️
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