मंगलवार, 13 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध--दूसरा अध्याय..(पोस्ट०२)


 ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥


श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--दूसरा अध्याय..(पोस्ट०२)

भगवत्कथा और भगवद्भक्तिका माहात्म्य

मुनयः साधु पृष्टोऽहं भवद्‌भिः लोकमङ्गलम् ।
यत्कृतः कृष्णसंप्रश्नो येनात्मा सुप्रसीदति ॥ ५ ॥
स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे ।
अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा संप्रसीदति ॥ ६ ॥
वासुदेवे भगवति भक्तियोगः प्रयोजितः ।
जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यद् अहैतुकम् ॥ ७ ॥
धर्मः स्वनुष्ठितः पुंसां विष्वक्सेनकथासु यः ।
नोत्पादयेद् यदि रतिं श्रम एव हि केवलम् ॥ ८ ॥

सूत जी कहते हैं -ऋषियो ! आपने सम्पूर्ण विश्वके कल्याणके लिये यह बहुत सुन्दर प्रश्र किया है; क्योंकि यह प्रश्र श्रीकृष्णके सम्बन्धमें है और इससे भलीभाँति आत्मशुद्धि हो जाती है ॥ ५ ॥ मनुष्योंके लिये सर्वश्रेष्ठ धर्म वही है, जिससे भगवान्‌ श्रीकृष्णमें भक्ति हो—भक्ति भी ऐसी, जिसमें किसी प्रकारकी कामना न हो और जो नित्य-निरन्तर बनी रहे; ऐसी भक्तिसे हृदय आनन्दस्वरूप परमात्माकी उपलब्धि करके कृतकृत्य हो जाता है ॥ ६ ॥ भगवान्‌ श्रीकृष्णमें भक्ति होते ही, अनन्य प्रेमसे उनमें चित्त जोड़ते ही निष्काम ज्ञान और वैराग्यका आविर्भाव हो जाता है ॥ ७ ॥ धर्मका ठीक-ठीक अनुष्ठान करनेपर भी यदि मनुष्यके हृदयमें भगवान्‌की लीला-कथाओंके प्रति अनुरागका उदय न हो तो वह निरा श्रम-ही-श्रम है ॥ ८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🙏🚩🦠🌼🌿जय सियाराम 🌿🌸🌼🦠🚩🙏🧎‍♂️

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  2. 🌼🍂🌾 जय श्री हरि: 🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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