रविवार, 18 फ़रवरी 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - तीसरा अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--तीसरा अध्याय..(पोस्ट०२)

भगवान्‌ के अवतारोंका वर्णन

द्वितीयं तु भवायास्य रसातलगतां महीम् ।
उद्धरिष्यन् उपादत्त यज्ञेशः सौकरं वपुः ॥ ७ ॥
तृतीयं ऋषिसर्गं वै देवर्षित्वमुपेत्य सः ।
तन्त्रं सात्वतमाचष्ट नैष्कर्म्यं कर्मणां यतः ॥ ८ ॥
तुर्ये धर्मकलासर्गे नरनारायणौ ऋषी ।
भूत्वात्मोपशमोपेतं अकरोद् दुश्चरं तपः ॥ ९ ॥

दूसरी बार इस संसारके कल्याणके लिये समस्त यज्ञोंके स्वामी उन भगवान्‌ ने ही रसातलमें गयी हुई पृथ्वीको निकाल लानेके विचारसे सूकररूप ग्रहण किया ॥ ७ ॥ ऋषियोंकी सृष्टिमें उन्होंने देवर्षि नारदके रूपमें तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वत तन्त्रका (जिसे ‘नारद-पाञ्चरात्र’ कहते हैं) उपदेश किया; उसमें कर्मोंके द्वारा किस प्रकार कर्मबन्धनसे मुक्ति मिलती है, इसका वर्णन है ॥ ८ ॥ धर्मपत्नी मूर्ति के गर्भ से उन्होंने नर-नारायण के रूपमें चौथा अवतार ग्रहण किया। इस अवतारमें उन्होंने ऋषि बनकर मन और इन्द्रियोंका सर्वथा संयम करके बड़ी कठिन तपस्या की ॥ ९ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🍂💟🌹जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ नमो नारायण
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. 🙏🚩🦠🌼🌿हे मैरे मर्यादा पुरूषोत्तम 🌿🌸🌼🦠🚩🙏🧎‍♂️

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