रविवार, 31 मार्च 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट 01)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

पाँचवाँ अध्याय  (पोस्ट 01)

 

भिन्न-भिन्न स्थानों तथा विभिन्न वर्गों की स्त्रियों के गोपी होने के कारण एवं अवतार-व्यवस्था का वर्णन

 

श्रीभगवानुवाच

रमावैकुण्ठवासिन्यः श्वेतद्वीपसखीजनाः ।
ऊर्ध्वं वैकुण्ठवासिन्यस्तथाजितपदाश्रिताः ॥१॥
श्रीलोकाचलवासिन्यः श्रीसख्योऽपि समुद्रजाः ।
ता गोप्योऽभिभविष्यन्ति लक्ष्मीपतिवराद्‌व्रजे ॥२॥
काश्चिद्दिव्या अदिव्याश्च तथा त्रिगुणवृत्तयः ।
भूमिगोप्यो भविष्यन्ति पुण्यैर्नानाविधैः कृतैः ॥३॥
यज्ञावतारं रुचिरं रुचिपुत्रं दिवस्पतिम् ।
मोहिताः प्रीतिभावेन वीक्ष्य देवजनस्त्रियः ॥४॥
ताश्च देवलवाक्येन तपस्तेपुर्हिमाचले ।
भक्त्या परमया ता मे गोप्यो भाव्या व्रजे विधे ॥५॥
अन्तर्हिते भगवति देवे धन्वन्तरौ भुवि ।
ओषध्यो दुःखमापन्ना निष्फला भारतेऽभवन् ॥६॥
सिद्ध्यर्थं तास्तपस्तेपुः स्त्रियो भूत्वा मनोहराः ।
चतुर्युगे व्यतीते तु प्रसन्नोऽभूद्धरिः परम् ॥७॥
वरं वृणीत चेत्यृक्तं श्रुत्वा नार्यो महावने ।
तं दृष्ट्वा मोहमापन्ना ऊचुर्भर्ता भवात्र नः ॥८॥
वृन्दावने द्वापरान्ते लता भूत्वा मनोहराः ।
भविष्यथ स्त्रियो रासे करिष्यामि वचश्च वः ॥९॥


श्रीभगवानुवाच -
भक्तिभावसमायुक्ता भूरिभाग्या वरांगनाः ।
लतागोप्यो भविष्यन्ति वृन्दारण्ये पितामह ॥१०॥
जालन्धर्य्यश्च या नार्यो वीक्ष्य वृन्दापतिं हरिम् ।
ऊचुर्वायं हरिः साक्षादस्माकं तु वरो भवेत् ॥११॥
आकाशवागभूत्तासां भजताशु रमापतिम् ।
यथा वृन्दा तथा यूयं वृन्दारण्ये भविष्यथ ॥१२॥
समुद्रकन्याः श्रीमत्स्यं हरिं दृष्ट्वा च मोहिताः ।
ता हि गोप्यो भविष्यन्ति श्रीमत्स्यस्य वराद्‌व्रजे ॥१३॥
आसीद्‌राजा पृथुः साक्षान्ममांशश्चण्डविक्रमः ।
जित्वा शत्रून्नृपश्रेष्ठो धरां कामान्दुदोह ह ॥१४॥
बर्हिष्मतीभवास्तत्र पृथुं दृष्ट्वा पुरस्त्रियः ।
अत्रेः समीपमागत्य ता ऊचुर्मोहविह्वलाः ॥१५॥
अयं तु राजराजेन्द्रः पृथुः पृथुलविक्रमः ।
कथं वरो भवेन्नो वै तद्‌वद त्वं महामुने ॥१६॥

भगवान् श्रीहरि कहते हैं – वैकुण्ठ में विराजने वाली रमादेवी की सहचरियाँ, श्वेतद्वीपकी सखियाँ, भगवान् अजित (विष्णु) के चरणोंके आश्रित ऊर्ध्व वैकुण्ठमें निवास करनेवाली देवियाँ तथा श्रीलोकाचलपर्वतपर रहनेवाली, समुद्रसे प्रकटित श्रीलक्ष्मीकी सखियाँ - ये सभी भगवान् कमलापति के वरदानसे व्रजमें गोपियाँ होंगी । पूर्वकृत विविध पुण्योंके प्रभावसे कोई दिव्य, कोई अदिव्य और कोई सत्त्व, रज, तम - तीनों गुणोंसे युक्त देवियाँ व्रजमण्डलमें गोपियाँ होगीं ॥ १ - ३ ॥

रुचिके यहाँ पुत्ररूपसे अवतीर्ण, द्युलोकपति रुचिरविग्रह भगवान् यज्ञको देखकर देवाङ्गनाएँ प्रेम-रसमें निमग्न हो गयीं। तदनन्तर वे देवलजीके उपदेशसे हिमालय पर्वतपर जाकर परम भक्तिभावसे तपस्या करने लगीं। ब्रह्मन् ! वे सब मेरे व्रजमें जाकर गोपियाँ होंगी ।। ४-५ ॥

भगवान् धन्वन्तरि जब इस भूतलपर अन्तर्धान हुए, उस समय सम्पूर्ण ओषधियाँ अत्यन्त दुःखमें डूब गयीं और भारतवर्षमें अपनेको निष्फल मानने लगीं। फिर सबने सुन्दर स्त्रीका वेष धारण करके तपस्या आरम्भ की। चार युग व्यतीत होनेपर भगवान् श्रीहरि उनपर अत्यन्त प्रसन्न हुए और बोले— 'तुम सब वर माँगो ।' यह सुनकर स्त्रियोंने उस महान् वनमें जब आँखें खोलीं, तब उन श्रीहरिका दर्शन करके वे सब- की सब मोहित हो गयीं और बोलीं- 'आप हमारे पतितुल्य आराध्यदेव होनेकी कृपा करें' ॥ ६-८ ॥

भगवान् श्रीहरि बोले- ओषधिस्वरूपा स्त्रियो ! द्वापरके अन्तमें तुम सभी लतारूपसे वृन्दावनमें रहोगी और वहाँ रासमें मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूँगा । ९ ॥

श्रीभगवान् कहते हैं - ब्रह्मन् ! भक्तिभावसे परिपूर्ण वे बड़भागिनी वराङ्गनाएँ वृन्दावनमें 'लता- गोपी' होंगी। इसी प्रकार जालंधर नगरकी स्त्रियाँ वृन्दापति भगवान् श्रीहरिका दर्शन करके मन-ही-मन संकल्प करने लगीं- 'ये साक्षात् श्रीहरि हम सबके स्वामी हों।' उस समय उनके लिये आकाशवाणी हुई - 'तुम सब शीघ्र ही रमापतिकी आराधना करो; फिर वृन्दाकी ही भाँति तुम भी वृन्दावनमें भगवान्‌की प्रिया गोपी होओगी।' मत्स्यावतारके समय मत्स्यविग्रह श्रीहरिको देखकर समुद्रकी कन्याएँ मुग्ध हो गयी थीं। श्रीमत्स्यभगवान्‌के वरदानसे वे भी व्रजमें गोपियाँ होंगी ॥। १० – १४ ॥

मेरे अंशभूत राजा पृथु बड़े प्रतापी थे । उन महाराजने सम्पूर्ण शत्रुओंको जीतकर पृथ्वीसे सारी अभीष्ट वस्तुओंका दोहन किया था। उस समय बर्हिष्मती नगरीमें रहनेवाली बहुत-सी स्त्रियाँ उन्हें देखकर मुग्ध हो गयीं और प्रेमसे विह्वल हो अनिजीके पास जाकर बोलीं- 'महामुने! समस्त राजाओंमें श्रेष्ठ महाराजा पृथु बड़े ही पराक्रमी हैं। ये किस प्रकारसे हमारे पति होंगे ? यह बतानेकी कृपा कीजिये ।। १५-१६ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌷💟🥀🌹जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय राधा माधव जय श्री कुंजबिहारी
    जय गोपीजन वल्लभ जय गिरधारी

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