श्रीगर्ग-संहिता
(गोलोकखण्ड)
बारहवाँ अध्याय (पोस्ट
01)
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव
की धूम;
गोप-गोपियों का उपायन लेकर आना; नन्द और
यशोदा-रोहिणीद्वारा सबका यथावत् सत्कार; ब्रह्मादि देवताओंका
भी श्रीकृष्णदर्शनके लिये आगमन
श्रीनारद
उवाच -
अथ पुत्रोत्सवं जातं श्रुत्वा नन्द उषःक्षणे ।
ब्राह्मणांश्च समाहूय कारयामास मंगलम् ॥१॥
सविधिं जातकं कृत्वा नन्दराजो महामनाः ।
विप्रेभ्यो दक्षिणाभिश्च मुदा लक्षं गवां ददौ ॥२॥
क्रोशमात्रं रत्नसानून्सुवर्णखिखरान् गिरीन् ।
सरसान्सप्तधान्यानां ददौ विप्रेभ्य आनतः ॥३॥
मृदंगवीणाशंखाद्या नेदुर्दुंदुभयो मुहुः ।
गायकाश्च जगुर्द्वारे ननृतुर्वारयोषितः ॥४॥
पताकैर्हेमकलशैर्वितानैस्तोरणैः शुभैः ।
अनेकवर्णैश्चित्रैश्च बभौ श्रीनन्दमन्दिरम् ॥५॥
रथ्या वीथ्यश्च देहल्यो भित्तिप्रांगणवेदिकाः ।
तोलिकामंडपसभा रेजुर्गन्धिजलांबरैः ॥६॥
गावः सुवर्णशृङ्ग्यश्च हेममालालसद्गलाः ।
घंटामंजीरझंकारा रक्तकंबलमंडिताः ॥७॥
पीतपुच्छाः सवत्साश्च तरुणीकरचिह्निताः ।
हरिद्राकुंकुमैर्युक्ताः चित्रधातुविचित्रिताः ॥८॥
बर्हिपुच्छैर्गन्धजलैर्वृषा धर्मदुरंधराः ।
इतस्ततो विरेजुः श्रीनन्दद्वारि मनोहराः ॥९॥
गोवत्सा हेममालाढ्या मुक्ताहारविराजिताः ।
इतस्ततो विलंघन्तो मंजीरचरणां सिताः ॥१०॥
श्रीनारदजी
कहते हैं— राजन् ! तदनन्तर गोष्ठमें विद्यमान नन्दजीने अपने घरमें पुत्रोत्सव
होनेका समाचार सुनकर प्रातःकाल ब्राह्मणोंको बुलवाया और स्वस्तिवाचनपूर्वक मङ्गल
कार्य कराया। विधिपूर्वक जातकर्म - संस्कार सम्पन्न करके महामनस्वी नन्दराजने
ब्राह्मणोंको आनन्दपूर्वक दक्षिणा देनेके साथ ही एक लाख गौएँ दान कीं। एक कोस लंबी
भूमि में सप्त- धान्यों के पर्वत खड़े किये गये। उनके शिखर रत्नों और सुवर्णों से
सज्जित किये गये। उनके साथ सरस एवं स्निग्ध पदार्थ भी थे। वे सब पर्वत नन्दजी ने
विनीतभाव से ब्राह्मणों को दिये ।। १-३ ॥
मृदङ्ग,
वीणा, शङ्ख और दुन्दुभि आदि बाजे बारंबार
बजाये जाने लगे । नन्दद्वारपर गायक मङ्गल गीत गाने लगे। वाराङ्गनाएँ नृत्य करने
लगीं। पताकाओं, सोनेके कलशों, चंदोवों,
सुन्दर
बंदनवारों तथा अनेक रंगके चित्रोंसे नन्द-मन्दिर उद्भासित होने लगा । सड़कें,
गलियाँ, द्वार देहलियाँ, दीवारें, आँगन और वेदियाँ (चबूतरे) – इनपर सुगन्धित
जलका छिड़काव करके सब ओरसे वस्त्रों और झंडियोंद्वारा सजावट कर दी गयी थी, जिससे ये सब चित्रमण्डप या चित्रशालाके समान शोभा पा रहे थे। गौओंके
सींगोंमें सोना मढ़ दिया गया था। उनके गलेमें सुवर्णकी माला पहना दी गयी थी। उनके
गलेमें घंटी और पैरोंमें मञ्जीरकी झंकार होती थी। उनकी पीठपर कुछ-कुछ लाल रंगकी
झूलें ओढ़ायी गयी थीं । इस प्रकार समस्त गौओंका शृङ्गार किया गया था। उनकी पूँछें
पीले रंगमें रँग दी गयी थीं। उनके साथ बछड़े भी थे, उनके
अङ्गोंपर तरुणी स्त्रियोंके हाथोंकी छाप लगी थी। हल्दी, कुङ्कुम
तथा विचित्र धातुओंसे वे चित्रित की गयी थीं। ।। ४-८ ॥
मोरपंख
और पुष्पोंसे अलंकृत तथा सुगन्धित जलसे अभिषिक्त धर्मधुरंधर मनोहर वृषभ
श्रीनंन्दरायजीके द्वारपर इधर-उधर सुशोभित थे। गौओंके सफेद बछड़े सोनेकी मालाओं और
मोतियोंके हारोंसे विभूषित हो, इधर-उधर
उछलते-कूदते फिर रहे थे। उनके पैरोंमें भी मञ्जीर बँधे थे ॥ १ बँधे थे ॥ ९ - १० ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌺🌿🌹🥀जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
अद्भुत विलक्षण अति सुंदर !!!
ऊँ श्री परमात्मने नमः
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