रविवार, 14 अप्रैल 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) दसवाँ अध्याय (पोस्ट 01)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

दसवाँ अध्याय  (पोस्ट 01)

 

कंस के अत्याचार; बलभद्रजी का अवतार तथा व्यासदेव द्वारा उनका स्तवन

 

श्रीनारद उवाच -
भीतः पलायते नायं योद्धारः कंसनोदिताः ।
अयुतं शस्त्रसंयुक्ता रुरुधुः शौरिमंदिरम् ॥१॥
शौरिः कालेन देवक्यामष्टौ पुत्रानजीजनत् ।
अनुवर्षं चाथ कन्यामेकां मायां सनातनीम् ॥२॥
कीर्तिमन्तं सुतं ह्यादौ जातमानकदुन्दुभिः ।
नीत्वा कंसं समभ्येत्य ददौ तस्मै परार्थवित् ॥३॥
सत्यवाक्यस्थितं शौरिं कंसो घृणी ह्यभूत् ।
दुःखं साधुर्न सहते सत्ये कस्य क्षमा न हि ॥४॥


कंस उवाच -
एष बालो यातु गृहमेतस्मान्न हि मे भयम् ।
युवयोरष्टमं गर्भं हनिष्यामि न संशयः ॥५॥


श्रीनारद उवाच -
इत्युक्तो वसुदेवस्तु सपुत्रो गृहमागतः ।
सत्यं नामन्यत मनाग्वाक्यं तस्य दुरात्मनः ॥६॥
तदाम्बरादागतं मां नत्वा पूज्योग्रसेनजः ।
प्रपच्छ देवाभिप्रायं प्रावोचं तं निबोध मे ॥७॥
नंदाद्या वसवः सर्वे वृषभान्वादयः सुराः ।
गोप्यो वेदऋचाद्याश्च संति भूमौ नृपेश्वर ॥८॥
वसुदेवादयो देवा मथुरायां च वृष्णयः ।
देवक्याद्याः स्त्रियः सर्वा देवताः सन्ति निश्चयः ॥९॥
सप्तवारप्रसंख्यानादष्टमाः सर्व एव हि ।
ते हन्तुः संख्ययाऽयं वा देवानां वामतो गतिः ॥१०॥


श्रीनारद उवाच -
इत्युक्त्वा तं मयि गते कृतदैत्यवधोद्यमे ।
कंसः कोपावृतः सद्यो यदून् हंतुं मनो दधे ॥११॥
वसुदेवं देवकीं च बद्ध्वाऽथ निगडैर्दृढैः ।
ममर्द तं शिलापृष्ठे देवकीगर्भजं शिशुम् ॥१२॥
जातिस्मरो विष्णुभयाज्जातं जातं जघान ह ।
इति दुष्टविभावाच्च भूमौ भूतं ह्यसंशयम् ॥१३॥
उग्रसेनस्तदा क्रुद्धो यादवेन्द्रो नृपेश्वरः ।
वारयामास कंसाख्यं वसुदेवसहायकृत् ॥१४॥
कंसस्य दुरभिप्रायं दृष्ट्वोत्तस्थुर्महाभटाः ।
उग्रसेनानुगा रक्षां चक्रुस्ते खड्‍गपाणयः ॥१५॥

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! कंसने सोचा, वसुदेवजी भयभीत होकर कहीं भाग न जायँ — ऐसा विचार मनमें आते ही उसने बहुत-से सैनिक भेज दिये । कंस की आज्ञा से दस हजार शस्त्रधारी सैनिकों ने पहुँचकर वसुदेवजी का घर घेर लिया । वसुदेवजी ने यथासमय देवकी के गर्भ से आठ पुत्र उत्पन्न किये, वे क्रमशः एक वर्षके बाद होते गये। फिर उन्होंने एक कन्या को भी जन्म दिया, जो भगवान्‌की सनातनी माया थी ॥ १-२ ॥

सर्वप्रथम जो पुत्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम कीर्तिमान् था । वसुदेवजी उसे गोदमें उठाकर कंसके पास ले गये। वे दूसरेके प्रयोजनको भी अच्छी तरहसे समझते थे, इसलिये वह बालक उन्होंने कंसको दे दिया । वसुदेवजीको अपने सत्यवचन के पालन में तत्पर देख कंसको दया आ गयी। साधुपुरुष दुःख सह लेते हैं, परंतु अपनी कही हुई बात मिथ्या नहीं होने देते । सचाई देखकर किसके मनमें क्षमा का भाव उदित नहीं होता ? ॥ ३-४॥

कंस ने कहा- वसुदेवजी ! यह बालक आपके साथ ही घर लौट जाय, इससे मुझे कोई भय नहीं है। परंतु आप दोनोंका जो आठवाँ गर्भ होगा, उसका वध मैं अवश्य करूँगा – इसमें कोई संशय नहीं है ॥ ५ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! कंसके यों कहनेपर वसुदेवजी अपने पुत्रके साथ घर लौट आये, परंतु उस दुरात्मा के वचन को उन्होंने तनिक भी सत्य नहीं माना ॥ ६ ॥

उस समय आकाशसे उतरकर मैं वहाँ गया । उग्रसेनकुमार कंस ने मुझे मस्तक झुकाकर मेरा स्वागत-सत्कार किया, और मुझसे देवताओंका अभिप्राय पूछा। उस समय मैंने उसे जो उत्तर दिया, वह मुझसे सुनो। मैंने कहा- 'नन्द आदि गोप वसु के अवतार हैं और वृषभानु आदि देवताओं के । नरेश्वर कंस ! इस व्रजभूमिमें जो गोपियाँ हैं, उनके रूपमें वेदोंकी ऋचाएँ आदि यहाँ निवास करती हैं। मथुरा में वसुदेव आदि जो वृष्णिवंशी हैं, वे सब-के-सब मूलतः देवता ही हैं। देवकी आदि सम्पूर्ण स्त्रियाँ भी निश्चय ही देवाङ्गनाएँ हैं। सात बार गिन लेनेपर सभी अङ्क आठ ही हो जाते हैं। तुम्हारे घातककी संख्यासे गिना जाय तो यह प्रथम बालक भी आठवाँ हो सकता है; क्योंकि देवताओंकी 'वामतो गति' है ॥ ७ – १० ॥

श्रीनारदजी कहते हैं— मिथिलेश्वर ! उससे यों कहकर जब मैं चला आया, तब देवताओंद्वारा किये गये दैत्यवध के लिये उद्योग पर कंस को बड़ा क्रोध हुआ । उसने उसी क्षण यादवों को मार डालने का विचार किया। उसने वसुदेव और देवकी को मजबूत बेड़ियों से बाँधकर कैद कर लिया और देवकी के उस प्रथम-गर्भजनित शिशु को शिलापृष्ठपर रखकर पीस डाला ॥ ११-१२ ॥

उसे अपने पूर्वजन्मकी घटनाओंका स्मरण था, अतः भगवान् विष्णुके भयसे तथा अपने दुष्ट स्वभावके कारण भी उसने इस भूतलपर प्रकट हुए देवकीके प्रत्येक बालकको जन्म लेते ही मार डाला । ऐसा करनेमें उसे तनिक भी हिचक नहीं हुई। यह सब देखकर यदुकुल- नरेश राजा उग्रसेन उस समय कुपित हो उठे। उन्होंने वसुदेवजीकी सहायता की और कंसको अत्याचार करने से रोका। कंसके दुष्ट अभिप्राय को प्रत्यक्ष देख महान् यादव वीर उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए। वे उग्रसेन के पीछे रहकर, खड्गहस्त हो उनकी रक्षा करने लगे ॥ १३-१५ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌼🌿🌺🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...