शनिवार, 27 अप्रैल 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) तेरहवाँ अध्याय (पोस्ट 01)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

तेरहवाँ अध्याय  (पोस्ट 01)

 

पूतनाका उद्धार

 

शौर्यनामयपृच्छार्थं करं दातुं नृपस्य च ।
पुत्रोत्सवं कथयितुं नंदे श्रीमथुरां गते ॥१॥
कंसेन प्रेषिता दुष्टा पूतना घातकारिणी ।
पुरेषु ग्रामघोषेषु चरंती घर्घरस्वना ॥२॥
अथ गोकुलमासाद्य गोपगोपीगणाकुलम् ।
रूपं दधार सा दिव्यं वपुः षोडशवार्षिकम् ॥३॥
न केऽपि रुरुधुर्गोपाः सुंदरीं तां च गोपिकाः ।
शचीं वाणीं रमां रंभां रतिं च क्षिपतीमिव ॥४॥
रोहिण्यां च यशोदायां धर्षितायां स्फुरत्कुचा ।
अंकमादाय तं बालं लालयंती पुनः पुनः ॥५॥
ददौ शिशोर्महाघोरा कालकूटावृतं स्तनम् ।
प्राणैः सार्द्धं पपौ दुग्धं कटुं रोषावृतो हरिः ॥६॥
मुंच मुंच वदंतीत्थं धावन्ती पीडितस्तना ।
नीत्वा बहिर्गता तं वै गतमाया बभूव ह ॥७॥
पतन्नेत्रा श्वेतगात्रा रुदन्ती पतिता भुवि ।
ननाद तेन ब्रह्माण्डं सप्तलोकैर्बिलैः सह ॥८॥
चचाल वसुधा द्वीपैः तदद्‌भुतमिवाभवत् ।
षट्क्रोशं सा दृढान् दीर्घान् वृक्षान् पृष्ठतले गतान् ॥९॥
चूर्णीचकार वपुषा वज्रांगेण नृपेश्वर ।
वदन्तस्ते गोपगणा वीक्ष्य घोरं वपुर्महत् ॥१०॥
अस्या अङ्गुलिगो बालो न जीवति कदाचन ।
तस्या उरसि सानन्दं क्रीडन्तं सुस्मितं शिशुम् ॥११॥
दुग्धं पीत्वा जृंभमाणं तं दृष्ट्वा जगृहुः स्त्रियः ।
यशोदया च रोहिण्या निधायोरसि विस्मिताः ॥१२॥
सर्वतो बालकं नीत्वा रक्षां चक्रुर्विधानतः ।
कालिंदीपुण्यमृत्तोयैर्गोपुच्छभ्रमणादिभिः ॥१३॥
गोमूत्रगोरजोभिश्च स्नापयित्वा त्विदं जगुः ॥१४॥

श्रीनारदजी कहते हैं— राजन् ! नन्दजी राजा कंसका कर चुकाने, वसुदेवजीकी कुशल पूछने और उन्हें अपने यहाँके पुत्रोत्सवका समाचार देनेके लिये मथुरा चले गये। उसी समय कंसकी भेजी हुई बाल- घातिनी 'घर्घर' ध्वनि वाली

दुष्टा राक्षसी पूतना नगरों, गाँवों और गोष्ठों में विचरती हुई गोप और गोपियों से भरे हुए गोकुल में आ पहुँची ।। १-२ ॥    

गोकुल के निकट आनेपर उसने मायासे दिव्य रूप धारण कर लिया। वह सोलह वर्षकी अवस्थावाली तरुणी बन गयी। उसका सौन्दर्य इतना दिव्य था कि वह अपनी अङ्गकान्ति से शची, सरस्वती, लक्ष्मी, रम्भा तथा रतिको भी तिरस्कृत कर रही थी, इसलिए उसे वहां के गोपों और गोपियों ने रोका भी नहीं  ।। ३-४ ॥    

चलते समय उसके उन्नत कुच दिव्य आभासे झलकते और हिलते थे। उसे देखकर रोहिणी तथा यशोदा भी हतप्रतिभ हो गयीं। उसने आते ही बालगोपाल को गोद में ले लिया और बारंबार लाड़ लड़ाती हुई उस महाघोर दानवीने शिशुके मुखमें हलाहल विषसे लिप्त अपना स्तन दे दिया। यह देख तीक्ष्ण रोषसे आवृत हो श्रीहरिने उसका सारा दूध उसके प्राणोंसहित पी लिया ।। ५-६ ॥    

उसके स्तनोंमें जब असह्य पीड़ा हुई, तब 'छोड़ो-छोड़ो' कहते हुए वह उठकर भागी । बच्चेको लिये लिये घरसे बाहर निकल गयी। बाहर जानेपर उसकी माया नष्ट हो गयी और वह अपने असली रूपमें दिखायी देने लगी। उसके नेत्र बाहर निकल आये। सारा शरीर सफेद पड़ गया और वह रोती- चिल्लाती हुई पृथ्वीपर गिर पड़ी। उसकी चिल्लाहटसे सातों लोक और सातों पाताल सहित सारा ब्रह्माण्ड गूँज उठा ।। ७-८ ॥   

 

 

द्वीपोंसहित सारी पृथ्वी डोलने लगी। वह एक अद्भुत-सी घटना हुई। नृपेश्वर ! पूतनाका विशाल शरीर छः कोस लंबा और वज्रके समान सुदृढ़ था। उसके गिरनेसे उसकी पीठके नीचे आये हुए बड़े-बड़े वृक्ष पिसकर चकनाचूर हो गये। उस समय गोपगण उस दानवीके भयंकर और विशाल शरीरको देखकर परस्पर कहने लगे- 'इसकी गोदमें गया हुआ बालक कदाचित् जीवित नहीं होगा ।' परंतु वह अद्भुत बालक उसकी छातीपर बैठा हुआ आनन्दसे खेलता और मुसकराता था ।। ९-११ ॥     

वह पूतना का दूध पीकर जम्हाई ले रहा था । उसे उस अवस्थामें देखकर यशोदा तथा रोहिणीके साथ जाकर स्त्रियोंने उठा लिया और छातीसे लगाकर वे सब की सब बड़े विस्मयमें पड़ गयीं। बच्चेको ले जाकर गोपियोंने सब ओरसे विधिपूर्वक उसकी रक्षा की । यमुनाजीकी पवित्र मिट्टी लगाकर उसके ऊपर यमुना-जलका छींटा दिया, फिर उसके ऊपर गायकी पूँछ घुमायी । गोमूत्र और गोरजमिश्रित जलसे उसको नहलाया और निम्नाङ्कित रूपसे कवचका पाठ किया - ॥ १२-१४ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



2 टिप्‍पणियां:

  1. जय जय श्री यशोदा नन्दन

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  2. 🌺🍂🌹जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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