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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(गोलोकखण्ड)
बारहवाँ
अध्याय (पोस्ट 02)
श्रीकृष्ण
जन्मोत्सव की धूम; गोप-गोपियों का उपायन
लेकर आना; नन्द और यशोदा-रोहिणीद्वारा सबका यथावत् सत्कार;
ब्रह्मादि देवताओंका भी श्रीकृष्णदर्शनके लिये आगमन
श्रुत्वा
पुत्रोत्सवं तस्य वृषभानुवरस्तथा ।
कलावत्या गजारूढो नन्दमंदिरमाययौ ॥११॥
नन्दा नवोपनन्दाश्च तथा षड्वृषभानवः ।
नानोपायनसंयुक्ताः सर्वे तेऽपि समाययुः ॥१२॥
उष्णीषोपरि मालाढ्याः पीतकंचुकशोभिताः ।
बर्हगुंजाबद्धकेशा वनमालाविभूषणाः ॥१३॥
वंशीधरा वेत्रहस्ताः सुपत्रतिलकार्चिताः ।
बद्धवर्णाः परिकरा गोपास्तेऽपि समाययुः ॥१४॥
नृत्यन्तः परिगायंतो धुन्वंतो वसनानि च ।
नानोपायनसंयुक्ताः श्मश्रुलाः शिशवः परे ॥१५॥
हैयंगवीनदुग्धानां दध्याज्यानां बलीन्बहून् ।
नीत्वा वृद्धा यष्टिहस्ता नन्दमंदिरमाययुः ॥१६॥
पुत्रोत्सवं व्रजेशस्य कथयन्तः परस्परम् ।
प्रेमविह्वलभावैः स्वैरानन्दाश्रुसमाकुलाः ॥१७॥
जाते पुत्रोत्सवे नन्दः स्वानंदाश्रुकुलेक्षणः ।
पूजयामास तान् सर्वांस्तिलकाद्यैर्विधानतः ॥१८॥
गोपा ऊचुः -
हे व्रजेश्वर हे नन्द जातः पुत्रोत्सवस्तथा ।
अनपत्यस्येच्छतोऽलमतः किं मंगलं परम् ॥१९॥
दैवेन दर्शितं चेदं दिनं वो बहुभिर्दिनैः ।
कृतकृत्याश्च भूताः स्मो दृष्ट्वा श्रीनन्दनन्दनम् ॥२०॥
हे मोहनेति दुरात्तमंकं नीत्व गदिष्यसि ।
यदा लालनभावेब भविता नस्तदा सुखम् ॥२१॥
श्रीनन्द उवाच -
भवतामाशिषः पुण्याज्जातं सौख्यमिदं शुभम् ।
आज्ञावर्ती ह्यहं गोपा गोपानां व्रजवासिनाम् ॥२२॥
नन्दरायजीके
यहाँ पुत्रोत्सवका समाचार सुनकर वृषभानुवर रानी कलावती (कीर्तिदा) के साथ हाथीपर
चढ़कर नन्दमन्दिरमें आये । व्रजमें जो नौ नन्द, नौ
उपनन्द तथा छः वृषभानु थे, वे सब भी नाना प्रकारकी
भेंट-सामग्री के साथ वहाँ आये। वे सिरपर पगड़ी तथा उसके ऊपर माला धारण किये,
पीले रंगके जामे पहने, केशोंमें मोरपंख और गुञ्जा
बाँधे तथा वनमालासे विभूषित थे। हाथोंमें वंशी और बेंतकी छड़ी लिये, सुन्दर पत्ररचनाके साथ तिलक लगाये, कमर में मोरपंख
बाँधे गोपालगण भी वहाँ आ गये। वे नाचते-गाते और वस्त्र हिलाते थे । मूँछवाले तरुण
और बिना मूँछके बालक भी भाँति-भाँतिकी भेंट लेकर वहाँ आये ।। ११-१५ ॥
बूढ़े
लोग हाथ में डंडा लिये अपने साथ माखन, दूध,
दही और घीकी भेंट लेकर नन्दभवनमें उपस्थित हुए। वे आपसमें व्रजराज के
यहाँ पुत्रोत्सव का संवाद सुनाते हुए प्रेम से विह्वल हो नेत्रों से आनन्द के आँसू
बहाते थे । पुत्रोत्सव होनेपर श्रीनन्दरायजी का आनन्द चरम सीमाको पहुँच गया था,
उनके नेत्र हर्षके आँसुओंसे भरे हुए थे । उन्होंने अपने द्वारपर आये
हुए समस्त गोपोंका तिलक आदिके द्वारा विधिवत् सत्कार किया ।। १६ – १८ ॥
गोप
बोले- हे व्रजेश्वर ! हे नन्दराज ! आपके यहाँ जो पुत्रोत्सव हुआ है,
यह संतानहीनता के कलङ्क- को मिटानेवाला है। इससे बढ़कर परम मङ्गल की
बात और क्या हो सकती है ? दैवने बहुत दिनों के बाद आज आपको
यह दिन दिखाया है, हमलोग श्रीनन्द- नन्दनका दर्शन करके
कृतार्थ हो जायँगे। जब आप दूरसे आकर पुत्रको गोदमें लेकर मोदपूर्वक लाड़ लड़ाते
हुए 'हे मोहन !' कहकर पुकारेंगे,
उस समय हमें बड़ा सुख मिलेगा ॥ १९–२१ ॥
श्रीनन्द
ने कहा— बन्धुओ ! आपलोगोंके आशीर्वाद और पुण्यसे आज यह आनन्ददायक शुभ दिवस प्राप्त
हुआ है,
मैं तो व्रजवासी गोप-गोपियोंका आज्ञापालक सेवक हूँ ॥ २२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌺🥀🌹🌺जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
जय श्री राधे गोविन्द
🙏🌷🙏