सोमवार, 8 अप्रैल 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) सातवाँ अध्याय (पोस्ट 03)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

सातवाँ अध्याय  (पोस्ट 03)

 

कंसकी दिग्विजय - शम्बर, व्योमासुर, बाणासुर, वत्सासुर, कालयवन तथा देवताओंकी पराजय

 

कंसादीनागतान्दृष्ट्वा शक्रो देवाधिपः स्वराट् ।
सर्वैर्देवणैः सार्द्धं योद्धुं कृद्धो विनिर्ययौ ॥२९॥
तयोर्युद्धमभूद्‌घोरं तुमुलं रोमहर्षणम् ।
दिव्यैश्च शस्त्रसंघातैर्बाणैस्तीक्ष्णैः स्फुरत्प्रभैः ॥३०॥
शस्त्रान्धकारे संजाते रथारूढो महेश्वरः ।
चिक्षेप वज्रं कंसाय शतधारं तडिद्‌द्युति ॥३१॥
मुद्‌गरेणापि तद्‌वज्रं तताडाशु महासुरः ।
पपात कुलिशं युद्धे छिन्नधारं बभूव ह ॥३२॥
त्यक्त्वा वज्रं तदा वज्री खड्‌गं जग्राह रोषतः ।
कंसं मूर्ध्नि तताडाशु नादं कृत्वाऽथ भैरवम् ॥३३॥
स क्षतो नाभवत्कंसो मालाहत इव द्विपः ।
गृहीत्वा स गदां गुर्वीमष्टधातुमयीं दृढाम् ॥३४॥
लक्षभारसमां कंसश्चिक्षेपेन्द्राय दैत्यराट् ।
तां समापततीं वीक्ष्य जग्राहाशु पुरंदरः ॥३५॥
ततश्चिक्षेप दैत्याय वीरो नमुचिसूदनः ।
चचार युद्धे विदलन्नरीन्मातलिसारथिः ॥३६॥
कंसो गृहीत्वा परिघं तताडांसेऽसुरद्विषः ।
तत्प्रहारेण देवेन्द्रः क्षणं मूर्च्छामवाप सः ॥३७॥
कंसं मरुद्‌गणाः सर्वे गृध्रपक्षैः स्फुरत्प्रभैः ।
बाणौघैश्छादयामासुर्वर्षासूर्यमिवांबुदः ॥३८॥
दोःसहस्रयुतो वीरश्चापं टंकारयन्मुहुः ।
तदा तान्कालयामास बाणैर्बाणासुरो बली ॥३९॥
बाणं च वसवो रुद्रा आदित्या ऋभवः सुराः ।
जघ्नुर्नानाविधैः शस्त्रैः सर्वतोऽद्रिं समागताः ॥४०॥
ततो भौमासुरः प्राप्तः प्रलंबाद्यसुरैर्नदन् ।
तेन नादेन देवास्ते निपेतुर्मूर्छिता रणे ॥४१॥
उत्थायाशु तदा शक्रो जगामारुह्य तत्त्वदृक् ।
नोदयामास कंसाय मत्तमैरावतं गजम् ॥४२॥

कंस आदि असुरोंको आया देख, त्रिभुवन सम्राट् देवराज इन्द्र समस्त देवताओंको साथ ले रोषपूर्वक युद्धके लिये निकले। उन दोनों दलोंमें भयंकर एवं रोमाञ्चकारी तुमुल युद्ध होने लगा। दिव्य शस्त्रोंके समूह तथा चमकीले तीखे बाण छूटने लगे ।। २९-३० ॥

इस प्रकार शस्त्रोंकी बौछारसे वहाँ अन्धकार-सा छा गया। उस समय रथपर बैठे हुए सुरेश्वर इन्द्रने कंसपर विद्युत् के समान कान्तिमान् सौ धारोंवाला वज्र छोड़ा किंतु उस महान् असुरने इन्द्रके वज्रपर मुद्गरसे प्रहार किया । इससे वज्रकी धारें टूट गयीं और वह युद्ध- भूमिमें गिर पड़ा। तब वज्रधारीने वज्र छोड़कर बड़े रोषके साथ तलवार हाथमें ली और भयंकर सिंहनाद करके तत्काल कंसके मस्तकपर प्रहार किया ।। ३१-३३ ॥

परंतु जैसे हाथीको फूलकी मालासे मारा जाय और उसको कुछ पता न लगे, उसी प्रकार खड्गसे आहत होनेपर भी कंसके सिरपर खरोंचतक नहीं आयी। उस दैत्यराजने अष्टधातुमयी मजबूत गदा, जो लाख भार लोहेके बराबर भारी थी, लेकर इन्द्रपर चलायी। उस गदाको अपने ऊपर आती देख नमुचिसूदन वीर देवेन्द्रने तत्काल हाथसे पकड़ लिया और उसे उस दैत्यपर ही दे मारा। इन्द्र के रथ का संचालन मातलि कर रहे थे और देवेन्द्र शत्रुदलका दलन करते हुए युद्धभूमिमें विचर रहे थे । कंसने परिघ लेकर असुरद्रोही इन्द्रके कंधेपर प्रहार किया। उस प्रहारसे देवराज क्षणभरके लिये मूर्च्छित हो गये ।। ३४-३७ ॥

उस समय समस्त मरुद्गणोंने गीधके पंखवाले चमकीले बाणसमूहोंसे कंसको उसी तरह ढक दिया, जैसे वर्षाकाल के सूर्यको मेघमालाएँ आच्छादित कर देती हैं ।। ३८ ॥

यह देख एक हजार भुजाओं से युक्त बलवान् वीर बाणासुर ने बारंबार धनुष की टंकार करते हुए अपने बाण—समूहों से उन मरुद्गणों को घायल करना आरम्भ किया। बाणासुर पर भी वसु, रुद्र, आदित्य तथा अन्यान्य देवता एवं ऋभुगण चारों ओर से टूट पड़े और नाना प्रकार के शस्त्रोंद्वारा उसपर प्रहार करने लगे, जैसे हाथी पर्वतों पर प्रहार करते हैं ।। ३९-४० ॥                                                                  

इतने में ही प्रलम्ब आदि असुरोंके साथ गर्जना करता हुआ भौमासुर आ पहुँचा। उसके उस भयानक सिंहनादसे देवतालोग मूर्च्छित होकर भूमिपर गिर पड़े। उस समय देवराज इन्द्र शीघ्र ही उठ गये और लाल आँखें किये ऐरावत हाथीपर आरूढ हो उस मदमत्त गजराज को कंस की ओर उसे कुचल डालने के लिये प्रेरित करने लगे ।। ४१-४२ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌸🍂🌺🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय श्री राधे गोविंद 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...