शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध दसवां अध्याय..(पोस्ट..०७)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--दसवाँ अध्याय..(पोस्ट ०७)

श्रीकृष्णका द्वारका-गमन

नूनं व्रतस्नानहुतादिनेश्वरः
     समर्चितो ह्यस्य गृहीतपाणिभिः ।
पिबंति याः सख्यधरामृतं मुहुः
     व्रजस्त्रियः सम्मुमुहुः यदाशयाः ॥ २८ ॥
या वीर्यशुल्केन हृताः स्वयंवरे
     प्रमथ्य चैद्यः प्रमुखान्हि शुष्मिणः ।
प्रद्युम्न साम्बाम्ब सुतादयोऽपरा
     याः चाहृता भौमवधे सहस्रशः ॥ २९ ॥
एताः परं स्त्रीत्वमपास्तपेशलं
     निरस्तशौचं बत साधु कुर्वते ।
यासां गृहात् पुष्करलोचनः पतिः
     न जातु अपैत्याहृतिभिः हृदि स्पृशन् ॥ ३० ॥
एवंविधा गदन्तीनां स गिरः पुरयोषिताम् ।
निरीक्षणेन अभिनन्दन् सस्मितेन ययौ हरिः ॥ ३१ ॥

सखी ! जिनका इन्होंने पाणिग्रहण किया है, उन स्त्रियों ने अवश्य ही व्रत, स्नान, हवन आदि के द्वारा इन परमात्माकी आराधना की होगी; क्योंकि वे बार-बार इनकी उस अधर-सुधाका पान करती हैं, जिसके स्मरणमात्रसे ही व्रजबालाएँ आनन्दसे मूर्च्छित हो जाया करती थीं ॥ २८ ॥ ये स्वयंवरमें शिशुपाल आदि मतवाले राजाओंका मान मर्दन करके जिनको अपने बाहुबलसे हर लाये थे तथा जिनके पुत्र प्रद्युम्र, साम्ब, आम्ब आदि हैं, वे रुक्मिणी आदि आठों पटरानियाँ और भौमासुरको मारकर लायी हुई जो इनकी हजारों अन्य पत्नियाँ हैं, वे वास्तवमें धन्य हैं। क्योंकि इन सभीने स्वतन्त्रता और पतिव्रतासे रहित स्त्रीजीवनको पवित्र और उज्ज्वल बना दिया है। इनकी महिमाका वर्णन कोई क्या करे। इनके स्वामी साक्षात् कमलनयन भगवान्‌ श्रीकृष्ण हैं, जो नाना प्रकारकी प्रिय चेष्टाओं तथा पारिजातादि प्रिय वस्तुओंकी भेंटसे इनके हृदयमें प्रेम एवं आनन्दकी अभिवृद्धि करते हुए कभी एक क्षणके लिये भी इन्हें छोडक़र दूसरी जगह नहीं जाते ॥ २९-३० ॥  हस्तिनापुरकी स्त्रियाँ इस प्रकार बातचीत कर ही रही थीं कि भगवान्‌ श्रीकृष्ण मन्द मुसकान और प्रेमपूर्ण चितवन से उनका अभिनन्दन करते हुए वहाँसे विदा हो गये ॥ ३१ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌹🕉️🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय हो द्वारकानाथ गोविंद

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