॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध--ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०५)
द्वारका में श्रीकृष्णका राजोचित स्वागत
भगवान् तत्र बन्धूनां पौराणां अनुवर्तिनाम् ।
यथाविधि उपसङ्गम्य सर्वेषां मानमादधे ॥ २१ ॥
प्रह्वाभिवादन आश्लेष करस्पर्श स्मितेक्षणैः ।
आश्वास्य चाश्वपाकेभ्यो वरैश्च अभिमतैर्विभुः ॥ २२ ॥
स्वयं च गुरुभिर्विप्रैः सदारैः स्थविरैरपि ।
आशीर्भिः युज्यमानोऽन्यैः वन्दिभिश्चाविशत् पुरम् ॥ २३ ॥
भगवान् श्रीकृष्ण ने बन्धु-बान्धवों, नागरिकों और सेवकों से उनकी योग्यता के अनुसार अलग- अलग मिलकर सब का सम्मान किया ॥ २१ ॥ किसी को सिर झुकाकर प्रणाम किया, किसी को वाणीसे अभिवादन किया, किसीको हृदयसे लगाया, किसीसे हाथ मिलाया, किसीकी ओर देखकर मुसकरा भर दिया और किसीको केवल प्रेमभरी दृष्टिसे देख लिया। जिसकी जो इच्छा थी, उसे वही-वरदान दिया। इस प्रकार चाण्डालपर्यन्त सबको संतुष्ट करके गुरुजन, सपत्नीक ब्राह्मण और वृद्धोंका तथा दूसरे लोगोंका भी आशीर्वाद ग्रहण करते एवं वंदीजनोंसे विरुदावली सुनते हुए सबके साथ भगवान् श्रीकृष्णने नगरमें प्रवेश किया ॥ २२-२३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
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