रविवार, 19 मई 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गोलोकखण्ड) सोलहवाँ अध्याय (पोस्ट 01)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गोलोकखण्ड)

सोलहवाँ अध्याय (पोस्ट 01)

 

भाण्डीर-वनमें नन्दजीके द्वारा श्रीराधाजीकी स्तुति; श्रीराधा और श्रीकृष्णका ब्रह्माजीके द्वारा विवाह; ब्रह्माजीके द्वारा श्रीकृष्णका स्तवन तथा नव-दम्पति की मधुर लीलाएँ  

 

श्रीनारद उवाच –


गाश्चारयन् नन्दनमङ्कदेशे
संलालयन् दूरतमं सकाशात् ।
कलिंदजातीरसमीरकंपितं
नंदोऽपि भांडीरवनं जगाम ॥१॥
कृष्णेच्छया वेगतरोऽथ वातो
घनैरभून्मेदुरमंबरं च ।
तमालनीपद्रुमपल्लवैश्च
पतद्‌भिरेजद्‍‌भिरतीव भाः कौ ॥२॥
तदांधकारे महति प्रजाते
बाले रुदत्यंकगतेऽतिभीते ।
नंदो भयं प्राप शिशुं स बिभ्र-
द्धरिं परेशं शरणं जगाम ॥३॥
तदैव कोट्यर्कसमूहदीप्ति-
रागच्छतीवाचलती दिशासु ।
बभूव तस्यां वृषभानुपुत्रीं
ददर्श राधां नवनंदराजः ॥४॥
कोटींदुबिंबद्युतिमादधानां
नीलांबरां सुंदरमादिवर्णाम् ।
मंजीरधीरध्वनिनूपुराणा-
माबिभ्रतीं शब्दमतीव मंजुम् ॥५॥
कांचीकलाकंकणशब्दमिश्रां
हारांगुलीयांगदविस्फुरंतीम् ।
श्रीनासिकामौक्तिकहंसिकीभिः
श्रीकंठचूडामणिकुंडलाढ्याम् ॥६॥
तत्तेजसा धर्षित आशु नंदो
नत्वाथ तामाह कृतांजलिः सन् ।
अयं तु साक्षात्पुरुषोत्तमस्त्वं
प्रियास्य मुख्यासि सदैव राधे ॥७॥
गुप्तं त्विदं गर्गमुखेन वेद्मि
गृहाण राधे निजनाथमंकात् ।
एनं गृहं प्रापय मेघभीतं
वदामि चेत्थं प्रकृतेर्गुणाढ्यम् ॥८॥

 

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! एक दिन नन्दजी अपने नन्दनको अङ्कमें लेकर लाड़ लड़ाते और गौएँ चराते हुए खिरकके पाससे बहुत दूर निकल गये। धीरे-धीरे भाण्डीर-वन जा पहुँचे, जो कालिन्दी-नीरका स्पर्श करके बहनेवाले तीरवर्ती शीतल समीरके झोंकेसे कम्पित हो रहा था। थोड़ी ही देरमें श्रीकृष्णकी इच्छासे वायुका वेग अत्यन्त प्रखर हो उठा । आकाश मेघोंकी घटासे आच्छादित हो गया । तमाल और कदम्ब वृक्षों- के पल्लव टूट-टूटकर गिरने, उड़ने और अत्यन्त भयका उत्पादन करने लगे। उस समय महान् अन्धकार छा गया। नन्दनन्दन रोने लगे। वे पिताकी गोदमें बहुत भयभीत दिखायी देने लगे। नन्दको भी भय हो गया। वे शिशुको गोद में लिये परमेश्वर श्रीहरिकी शरणमें गये ॥ १-३ ॥

 

उसी क्षण करोड़ों सूर्योंके समूहकी सी दिव्य दीप्ति उदित हुई, जो सम्पूर्ण दिशाओं में व्याप्त थी; वह क्रमशः निकट आती-सी जान पड़ी उस दीप्तिराशि के भीतर नौ नन्दों के राजा ने वृषभानुनन्दिनी श्रीराधा को देखा। वे करोड़ों चन्द्रमण्डलों की कान्ति धारण किये हुए थीं। उनके श्रीअङ्गोंपर आदिवर्ण नील रंगके सुन्दर वस्त्र शोभा पा रहे थे। चरणप्रान्त में मञ्जीरों की धीर-ध्वनिसे युक्त नूपुरोंका अत्यन्त मधुर शब्द हो रहा था । उस शब्दमें काञ्चीकलाप और कङ्कणों की झनकार भी मिली थी । रत्नमय हार, मुद्रिका और बाजूबंदोंकी प्रभासे वे और भी उद्भासित हो रही थीं । नाकमें मोतीकी बुलाक और नकबेसरकी अपूर्व शोभा हो रही थी। कण्ठमें कंठा, सीमन्तपर चूड़ामणि और कानोंमें कुण्डल झलमला रहे थे ॥ ४-६ ॥

 

श्रीराधाके दिव्य तेज से अभिभूत हो नन्द ने तत्काल उनके सामने मस्तक झुकाया और हाथ जोड़कर कहा— 'राधे ! ये साक्षात् पुरुषोत्तम हैं और तुम इनकी मुख्य प्राणवल्लभा हो, यह गुप्त रहस्य मैं गर्गजीके मुखसे सुनकर जानता हूँ। राधे! अपने प्राणनाथको मेरे अङ्क से ले लो। ये बादलोंकी गर्जनासे डर गये हैं । इन्होंने लीलावश यहाँ प्रकृतिके गुणोंको स्वीकार किया है। इसीलिये इनके विषयमें इस प्रकार भयभीत होनेकी बात कही गयी है। देवि ! मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ। तुम इस भूतलपर मेरी यथेष्ट रक्षा करो। तुमने कृपा करके ही मुझे दर्शन दिया है, वास्तव में तो तुम सब लोगोंके लिये दुर्लभ हो'  ॥ ७ – ८ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🌹🥀जय श्री राधे गोविंद
    जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
    जय श्री राधे जय श्री कृष्ण
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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