शनिवार, 25 मई 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध पंद्रहवां अध्याय..(पोस्ट..१०)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध-पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट १०)

कृष्णविरहव्यथित पाण्डवों का 
परीक्षित्‌ को राज्य देकर स्वर्ग सिधारना

सर्वे तमनु निर्जग्मुर्भ्रातरः कृतनिश्चयाः ।
कलिनाधर्ममित्रेण दृष्टा स्पृष्टाः प्रजा भुवि ॥४५॥
ते साधुकृतसर्वार्था ज्ञात्वाऽऽत्यन्तिकमात्मनः ।
मनसा धारयामासुर्वैकुठचरणाम्बुजम् ॥४६॥
तद्धनोद्रिक्तया भक्त्या विशुद्धधिषणाः परे ।
तस्मिन् नारायणपदे एकान्तमतयो गतिम् ॥४७॥
अवापुर्दुरवापां ते असद्भिर्विषयात्मभिः ।
विधूतकल्मषास्थाने विरजेनात्मनैव हि ॥४८॥
विदुरोऽपि परित्यज्य प्रभासे देहमात्मवान् ।
कृष्णावेशेन तच्चित्तः पितृभिः स्वक्षयं ययौ ॥४९॥
द्रौपदी च तदाऽऽज्ञाय पतीनामनपेक्षताम् ।
वासुदेवे भगवति ह्येकान्तमतिराप तम् ॥५०॥
यः श्रद्धयैतद् भगवत्प्रियाणां 
पाण्डोः सुतानामिती सम्प्रयाणम् ।
श्रुणोत्यलं स्वत्ययनं पवित्रं 
लब्ध्या हरौ भक्तिमुपैति सिद्धिम् ॥५१॥

भीमसेन, अर्जुन आदि युधिष्ठिर के छोटे भाइयोंने भी देखा कि अब पृथ्वी में सभी लोगों को अधर्म के सहायक कलियुग ने प्रभावित कर डाला है; इसलिये वे भी श्रीकृष्ण चरणोंकी प्राप्तिका दृढ़ निश्चय करके अपने बड़े भाईके पीछे-पीछे चल पड़े ॥ ४५ ॥ उन्होंने जीवनके सभी लाभ भलीभाँति प्राप्त कर लिये थे; इसलिये यह निश्चय करके कि भगवान्‌ श्रीकृष्णके चरण-कमल ही हमारे परम पुरुषार्थ हैं, उन्होंने उन्हें हृदयमें धारण किया ॥ ४६ ॥ पाण्डवोंके हृदयमें भगवान्‌ श्रीकृष्णके चरण-कमलोंके ध्यानसे भक्ति-भाव उमड़ आया, उनकी बुद्धि सर्वथा शुद्ध होकर भगवान्‌ श्रीकृष्णके उस सर्वोत्कृष्ट स्वरूपमें अनन्य भावसे स्थिर हो गयी; जिसमें निष्पाप पुरुष ही स्थिर हो पाते हैं। फलत: उन्होंने अपने विशुद्ध अन्त:करणसे स्वयं ही वह गति प्राप्त की, जो विषयासक्त दुष्ट मनुष्योंको कभी प्राप्त नहीं हो सकती ॥ ४७-४८ ॥ संयमी एवं श्रीकृष्णके प्रेमावेशमें मुग्ध भगवन्मय विदुरजीने भी अपने शरीरको प्रभास-क्षेत्रमें त्याग दिया। उस समय उन्हें लेनेके लिये आये हुए पितरोंके साथ वे अपने लोक (यमलोक) को चले गये ॥ ४९ ॥ द्रौपदीने देखा कि अब पाण्डवलोग निरपेक्ष हो गये हैं; तब वे अनन्य प्रेमसे भगवान्‌ श्रीकृष्णका ही चिन्तन करके उन्हें प्राप्त हो गयीं ॥ ५० ॥

भगवान्‌ के प्यारे भक्त पाण्डवों के महाप्रयाणकी इस परम पवित्र और मङ्गलमयी कथाको जो पुरुष श्रद्धासे सुनता है, वह निश्चय ही भगवान्‌ की भक्ति और मोक्ष प्राप्त करता है ॥ ५१ ॥

इति श्रीमद्भगवते महापुराणे पारमहंस्या संहितायं प्रथमस्कन्धे पाण्डवस्वर्गाहणं नाम पंचदशोऽध्यायः ॥१५॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    ॐ श्री गोविंदाय नमो नमः
    नारायण नारायण नारायण नारायण 🌹💖🥀🙏🙏
    🌹🌹🌹जय श्री हरि:🍂🙏

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