॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
प्रथम स्कन्ध- अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट ०७)
राजा परीक्षत् को शृङ्गी ऋषिका शाप
तस्य पुत्रोऽतितेजस्वी विहरन् बालकोऽर्भकैः ।
राज्ञाघं प्रापितं तातं श्रुत्वा तत्रेदमब्रवीत् ॥ ३२ ॥
अहो अधर्मः पालानां पीव्नां बलिभुजामिव ।
स्वामिन्यघं यद् दासानां द्वारपानां शुनामिव ॥ ३३ ॥
ब्राह्मणैः क्षत्रबन्धुर्हि गृहपालो निरूपितः ।
स कथं तद्गृहे द्वाःस्थः सभाण्डं भोक्तुमर्हति ॥ ३४ ॥
कृष्णे गते भगवति शास्तर्युत्पथगामिनाम् ।
तद् भिन्नसेतूनद्याहं शास्मि पश्यत मे बलम् ॥ ३५ ॥
इत्युक्त्वा रोषताम्राक्षो वयस्यान् ऋषिबालकः ।
कौशिक्याप उपस्पृश्य वाग्वज्रं विससर्ज ह ॥ ३६ ॥
इति लङ्घितमर्यादं तक्षकः सप्तमेऽहनि ।
दङ्क्ष्यति स्म कुलाङ्गारं चोदितो मे ततद्रुहम् ॥ ३७ ॥
उन शमीक मुनिका पुत्र बड़ा तेजस्वी था। वह दूसरे ऋषिकुमारों के साथ पास ही खेल रहा था। जब उस बालकने सुना कि राजाने मेरे पिता के साथ दुर्व्यवहार किया है, तब वह इस प्रकार कहने लगा— ॥ ३२ ॥ ‘ये नरपति कहलानेवाले लोग उच्छिष्टभोजी कौओं के समान संड-मुसंड होकर कितना अन्याय करने लगे हैं ! ब्राह्मणोंके दास होकर भी ये दरवाजेपर पहरा देनेवाले कुत्ते के समान अपने स्वामी का ही तिरस्कार करते हैं ॥ ३३ ॥ ब्राह्मणों ने क्षत्रियों को अपना द्वारपाल बनाया है। उन्हें द्वारपर रहकर रक्षा करनी चाहिये, घरमें घुसकर स्वामी के बर्तनों में खाने का उसे अधिकार नहीं है ॥ ३४ ॥ अतएव उन्मार्गगामियों के शासक भगवान् श्रीकृष्णके परमधाम पधार जानेपर इन मर्यादा तोडऩेवालों को आज मैं दण्ड देता हूँ। मेरा तपोबल देखो’ ॥ ३५ ॥ अपने साथी बालकों से इस प्रकार कहकर क्रोधसे लाल-लाल आँखोंवाले उस ऋषिकुमार ने कौशिकी नदीके जलसे आचमन करके अपने वाणीरूपी वज्रका प्रयोग किया ॥ ३६ ॥ ‘कुलाङ्गार परीक्षित् ने मेरे पिताका अपमान करके मर्यादाका उल्लङ्घन किया है, इसलिये मेरी प्रेरणासे आजके सातवें दिन उसे तक्षक सर्प डस लेगा’ ॥ ३७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀🌺जय श्री हरि:🙏🙏
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण