गुरुवार, 20 जून 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध उन्नीसवां अध्याय..(पोस्ट ०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध- उन्नीसवाँ अध्याय..(पोस्ट ०२)

परीक्षित्‌का अनशनव्रत और शुकदेवजीका आगमन

अथो विहायेमममुं च लोकं
    विमर्शितौ हेयतया पुरस्तात् ।
कृष्णाङ्‌घ्रिसेवामधिमन्यमान
    उपाविशत् प्रायममर्त्यनद्याम् ॥ ५ ॥
या वै लसच्छ्रीतुलसीविमिश्र
    कृष्णाङ्‌घ्रिरेण्वभ्यधिकाम्बुनेत्री ।
पुनाति लोकानुभयत्र सेशान्
    कस्तां न सेवेत मरिष्यमाणः ॥ ६ ॥
इति व्यवच्छिद्य स पाण्डवेयः
    प्रायोपवेशं प्रति विष्णुपद्याम् ।
दधौ मुकुन्दाङ्‌घ्रिमनन्यभावो
    मुनिव्रतो मुक्तसमस्तसङ्गः ॥ ७ ॥
तत्रोपजग्मुर्भुवनं पुनाना
    महानुभावा मुनयः सशिष्याः ।
प्रायेण तीर्थाभिगमापदेशैः
    स्वयं हि तीर्थानि पुनन्ति सन्तः ॥ ८ ॥
अत्रिर्वसिष्ठश्च्यवनः शरद्वान्
    अरिष्टनेमिर्भृगुरङ्‌गिराश्च ।
पराशरो गाधिसुतोऽथ राम
    उतथ्य इन्द्रप्रमदेध्मवाहौ ॥ ९ ॥
मेधातिथिर्देवल आर्ष्टिषेणो
    भारद्वाजो गौतमः पिप्पलादः ।
मैत्रेय और्वः कवषः कुम्भयोनिः
    द्वैपायनो भगवान् नारदश्च ॥ १० ॥
अन्ये च देवर्षिब्रह्मर्षिवर्या
    राजर्षिवर्या अरुणादयश्च ।
नानार्षेयप्रवरान् समेतान्
    अभ्यर्च्य राजा शिरसा ववन्दे ॥ ११ ॥

वे (राजा परीक्षित्‌) इस लोक और परलोक के भोगों को तो पहले से ही तुच्छ और त्याज्य समझते थे। अब उनका स्वरूपत: त्याग करके भगवान्‌ श्रीकृष्णके चरणकमलोंकी सेवाको ही सर्वोपरि मानकर आमरण अनशन-व्रत लेकर वे गङ्गातटपर बैठ गये ॥ ५ ॥ गङ्गाजीका जल भगवान्‌ श्रीकृष्ण के चरणकमलोंका वह पराग लेकर प्रवाहित होता है, जो श्रीमती तुलसीकी गन्धसे मिश्रित है। यही कारण है कि वे लोकपालोंके सहित ऊपर-नीचेके समस्त लोकोंको पवित्र करती हैं। कौन ऐसा मरणासन्न पुरुष होगा, जो उनका सेवन न करेगा ? ॥ ६ ॥ इस प्रकार गङ्गाजी के तटपर आमरण अनशन का निश्चय करके उन्होंने समस्त आसक्तियों का परित्याग कर दिया और वे मुनियोंका व्रत स्वीकार करके अनन्यभावसे श्रीकृष्णके चरणकमलोंका ध्यान करने लगे ॥ ७ ॥ उस समय त्रिलोकीको पवित्र करनेवाले बड़े-बड़े महानुभाव ऋषि-मुनि अपने शिष्योंके साथ वहाँ पधारे। संतजन प्राय: तीर्थयात्राके बहाने स्वयं उन तीर्थस्थानोंको ही पवित्र करते हैं ॥ ८ ॥ उस समय वहाँपर अत्रि, वसिष्ठ, च्यवन, शरद्वान्, अरिष्टनेमि, भृगु, अङ्गिरा, पराशर, विश्वामित्र, परशुराम, उतथ्य, इन्द्रप्रमद, इध्मवाह, मेधातिथि, देवल, आॢष्टषेण, भारद्वाज, गौतम, पिप्पलाद, मैत्रेय, और्व, कवष, अगस्त्य, भगवान्‌ व्यास, नारद तथा इनके अतिरिक्त और भी कई श्रेष्ठ देवर्षि, ब्रहमर्षि तथा अरुणादि राजर्षिवर्योंका शुभागमन हुआ। इस प्रकार विभिन्न गोत्रोंके मुख्य-मुख्य ऋषियोंको एकत्र देखकर राजाने सबका यथायोग्य सत्कार किया और उनके चरणोंपर सिर रखकर वन्दना की ॥९-११॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🌹🥀जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    हे नाथ हे मेरे गोविंद हे जगन्नाथ हे करुणामय द्वारका नाथ हे नारायण आपका हर क्षण सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: चरण वंदन 🪷🙏🪷🙏🪷🙏🪷🙏

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