शुक्रवार, 21 जून 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध उन्नीसवां अध्याय..(पोस्ट ०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध- उन्नीसवाँ अध्याय..(पोस्ट ०३)

परीक्षित्‌का अनशनव्रत और शुकदेवजीका आगमन

सुखोपविष्टेष्वथ तेषु भूयः
    कृतप्रणामः स्वचिकीर्षितं यत् ।
विज्ञापयामास विविक्तचेता
    उपस्थितोऽग्रेऽभिगृहीतपाणिः ॥ १२ ॥

राजोवाच

अहो वयं धन्यतमा नृपाणां
    महत्तमानुग्रहणीयशीलाः ।
राज्ञां कुलं ब्राह्मणपादशौचाद्
    दूराद् विसृष्टं बत गर्ह्यकर्म ॥ १३ ॥
तस्यैव मेऽघस्य परावरेशो
    व्यासक्तचित्तस्य गृहेष्वभीक्ष्णम् ।
निर्वेदमूलो द्विजशापरूपो
    यत्र प्रसक्तो भयमाशु धत्ते ॥ १४ ॥
तं मोपयातं प्रतियन्तु विप्रा
    गङ्गा च देवी धृतचित्तमीशे ।
द्विजोपसृष्टः कुहकस्तक्षको वा
    दशत्वलं गायत विष्णुगाथाः ॥ १५ ॥
पुनश्च भूयाद्‍भगवत्यनन्ते
    रतिः प्रसङ्गश्च तदाश्रयेषु ।
महत्सु यां यामुपयामि सृष्टिं
    मैत्र्यस्तु सर्वत्र नमो द्विजेभ्यः ॥ १६ ॥

जब सब लोग आरामसे अपने-अपने आसनोंपर बैठ गये, तब महाराज परीक्षित्‌ने उन्हें फिरसे प्रणाम किया और उनके सामने खड़े होकर शुद्ध हृदयसे अञ्जलि बाँधकर वे जो कुछ करना चाहते थे, उसे सुनाने लगे ॥ १२ ॥
राजा परीक्षित्‌ने कहा—अहो ! समस्त राजाओंमें हम धन्य हैं। धन्यतम हैं। क्योंकि अपने शीलस्वभावके कारण हम आप महापुरुषोंके कृपापात्र बन गये हैं। राजवंशके लोग प्राय: निन्दित कर्म करनेके कारण ब्राह्मणोंके चरण-धोवनसे दूर पड़ जाते हैं—यह कितने खेदकी बात है ॥ १३ ॥ मैं भी राजा ही हूँ। निरन्तर देह-गेहमें आसक्त रहनेके कारण मैं भी पापरूप ही हो गया हूँ। इसीसे स्वयं भगवान्‌ ही ब्राह्मणके शापके रूपमें मुझपर कृपा करनेके लिये पधारे हैं। यह शाप वैराग्य उत्पन्न करनेवाला है। क्योंकि इस प्रकारके शापसे संसारासक्त पुरुष भयभीत होकर विरक्त हो जाया करते हैं ॥ १४ ॥ ब्राह्मणो ! अब मैंने अपने चित्तको भगवान्‌के चरणोंमें समर्पित कर दिया है। आपलोग और मा गङ्गाजी शरणागत जानकर मुझपर अनुग्रह करें, ब्राह्मणकुमारके शापसे प्रेरित कोई दूसरा कपटसे तक्षकका रूप धरकर मुझे डस ले अथवा स्वयं तक्षक आकर डस ले; इसकी मुझें तनिक भी परवा नहीं है। आपलोग कृपा करके भगवान्‌की रसमयी लीलाओंका गायन करें ॥ १५ ॥ मैं आप ब्राह्मणोंके चरणोंमें प्रणाम करके पुन: यही प्रार्थना करता हूँ कि मुझे कर्मवश चाहे जिस योनिमें जन्म लेना पड़े, भगवान्‌ श्रीकृष्णके चरणोंमें मेरा अनुराग हो, उनके चरणाश्रित महात्माओंसे विशेष प्रीति हो और जगत्के समस्त प्राणियोंके प्रति मेरी एक-सी मैत्री रहे। ऐसा आप आशीर्वाद दीजिये ॥ १६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌼🥀🌾🌼जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव

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