मंगलवार, 30 जुलाई 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) सत्रहवाँ अध्याय (पोस्ट 03)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

सत्रहवाँ अध्याय (पोस्ट 03)

 

श्रीकृष्ण का गोपदेवी के रूप से वृषभानु-भवन में जाकर श्रीराधा से मिलना

 

श्रीनारद उवाच -
एवं राधावचः श्रुत्वा मायायुवतिवेषधृक् ।
उवाच भगवान् कृष्णो राधां कमललोचनाम् ॥ ३० ॥


श्रीभगवानुवाच -
रम्भोरु नन्दनगरे नन्दगेहस्य चोत्तरे ।
गोकुले वसतिर्मेऽस्ति नाम्नाऽहं गोपदेवता ॥ ३१ ॥
त्वद्‌रूपगुणमाधुर्यं श्रुतं मे ललितामुखात् ।
तद्‌द्रष्टुं चंचलापाङ्‌गि त्वद्‌गृहेऽहं समागता ॥ ३२ ॥
श्रीमल्लवंगलतिकास्फुटमोदिनीनां
     गुञ्जानिकुञ्जमधुप- ध्वनिकुञ्जपुञ्जम् ।
दृष्टं श्रुतं नवनवं तव कंजनेत्रे
     दिव्यं पुरंदरपुरेऽपि न यत्समानम् ॥ ३३ ॥


श्रीनारद उवाच -
एवं तयोर्मेलनं तद्‌बभूव मिथिलेश्वर ।
प्रीतिं परस्परं कृत्वा वने तत्र विरेजतुः ॥ ३४ ॥
हसन्त्यौ ते च गायन्त्यौ पुष्पकन्दुकलीलया ।
पश्यन्त्यौ वनवृक्षांश्च चेरतुर्मैथिलेश्वर ॥ ३५ ॥
कलाकौशल संपन्नां राधां कमललोचनाम् ।
गिरा मधुरया राजन् प्राहेदं गोपदेवता ॥ ३६ ॥


गोपदेवतोवाच -
दूरे वै नन्दनगरं सन्ध्या जाता व्रजेश्वरि ।
प्रभाते चागमिष्यामि त्वत्सकाशं न संशयः ॥ ३७ ॥


श्रीनारद उवाच -
श्रुत्वा वचस्तस्य तु तद्‌व्रजेश्वरीं
     निक्षिप्य सद्यो नयनांबुसन्ततिम् ।
रोमांचहर्षोद्‌गमभावसंवृता
     रंभेव भूमौ पतिता मरुद्धता ॥ ३८ ॥
शंकागतास्तत्र सखीगणास्त्वरं
     सुवीजयन्त्यो व्यजनैर्व्यवस्थिताः ।
श्रीखण्डपुष्प द्रवचर्चितांऽशुकां
     जगाद राधां नृप गोपदेवता ॥ ३९ ॥


गोपदेवतोवाच -
प्रभाते आगमिष्यामि मा शोकं कुरु राधिके ।
गोश्च भ्रातुर्गोरसस्य शपथो मे न चेदिदम् ॥ ४० ॥


श्रीनारद उवाच -
एवमुक्त्वा हरी राधां समाश्वास्य नृपेश्वर ।
मायायुवतिवेषोऽसौ ययौ श्रीनन्दगोकुलम् ॥ ४१ ॥

 

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! यह सुनकर मायासे युवतीका वेष धारण करनेवाले भगवान् श्रीकृष्णने कमलनयनी राधासे इस प्रकार कहा- ॥ ३० ॥

श्रीभगवान् बोले – रम्भोरु ! नन्दनगर गोकुलमें नन्दभवनसे उत्तर दिशामें मेरा निवास है । मेरा नाम 'गोपदेवी' है। मैंने ललिताके मुखसे तुम्हारी रूप- माधुरी और गुण-माधुरीका वर्णन सुना है; अतः चञ्चल लोचनोंवाली सुन्दरी ! मैं तुम्हें देखनेके लिये यहाँ तुम्हारे घरमें चली आयी हूँ । कमललोचने ! जहाँ ललित लवङ्गलता की सुस्पष्ट सुगन्ध छा रही है, जहाँके गुञ्जा निकुञ्ज में मधुपोंकी मधुर ध्वनिसे युक्त कंजपुष्प खिल रहे हैं, वह श्रुतिपथमें आया हुआ तुम्हारा नित्य- नूतन दिव्य नगर आज अपनी आँखों देख लिया । इसके समान सुन्दर तो देवराज इन्द्रकी पुरी अमरावती भी नहीं होगी ।। ३१–३३ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! इस प्रकार दोनों प्रिया-प्रियतम का मिलन हुआ। वे परस्पर प्रीतिका परिचय देते हुए वहाँ उपवनमें शोभा पाने लगे । पुष्पमय कन्दुक (गेंद) के खेल खेलते हुए वे दोनों हँसते और गीत गाते थे। वनके वृक्षोंको देखते हुए वे इधर-उधर विचरने लगे । राजन् ! कला- कौशलसे सम्पन्न कमललोचना राधाको सम्बोधित करके गोपदेवीने मधुर वाणीसे कहा || ३४ – ३६॥

गोपदेवी बोली - व्रजेश्वरि ! नन्दनगर यहाँसे दूर है और अब संध्या हो गयी है, अतः जाती हूँ । कल प्रातः काल तुम्हारे पास आऊँगी, इसमें संशय नहीं है ॥ ३७ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं— राजन् ! गोपदेवीकी यह बात सुनकर व्रजेश्वरी श्रीराधाके नयनोंसे तत्काल आँसुओंकी धारा बह चली। वे रोमाञ्च तथा हर्षोद्गमके भावसे आवृत हो कटे हुए कदलीवृक्षकी भाँति पृथ्वीपर गिर पड़ीं। यह देख वहाँ सखियाँ सशङ्क हो गयीं और तुरंत व्यजन लेकर, पास खड़ी हो, हवा करने लगीं। उनके वस्त्रोंपर चन्दन-पुष्पोंके इत्र छिड़के गये । उस समय गोपदेवीने श्रीराधासे कहा ।। ३८-३९ ॥

गोपदेवी बोली- राधिके ! मैं प्रातः काल अवश्य आऊँगी तुम चिन्ता न करो। यदि ऐसा न हो तो मुझे गाय, गोरस और अपने भाईकी सौगन्ध है ॥ ४० ॥

नारदजी कहते हैं— नृपेश्वर ! यों कहकर मायासे युवतीका वेष धारण करनेवाले श्रीहरि राधाको धीरज बँधा- कर श्रीनन्दगोकुल (नन्दगाँव) में चले गये ॥ ४१ ॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें वृन्दावनखण्डके अन्तर्गत 'श्रीराधा-कृष्ण-संगम' नामक सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १७ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से




1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🌼🌺जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    राधेकृष्णा राधेकृष्णा राधेकृष्णा
    जय श्री राधे गोविंद 🙏💟🙏

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