बुधवार, 3 जुलाई 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) नवाँ अध्याय ( पोस्ट 04 )


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

नवाँ अध्याय ( पोस्ट 04 )

 

ब्रह्माजीके द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति

 

भजे कृष्णक्रोडे भृगुमुनिपदं श्रीगृहमलं
     तथा श्रीवत्साङ्कं निकषरुचियुक्तं द्युतिपरम् ।
गले हीराहारान् कनकमणिमुक्तावलिधरान्
     स्फुरत् ताराकारान् भ्रमरवलिभारान् ध्वनिकरान् ॥ २५ ॥
वंशीविभूषितमलं द्विजदानशीलं
     सिंद्रूरवर्णमतिकीचकरावलीलम् ।
हेमांगुलीयनिकरं नखचंद्रयुक्तं
     हस्तद्वयं स्मर कदम्बसुगन्धपृक्तम् ॥ २६ ॥
शनैश्चलन् मानसराजहंस-
     ग्रीवाकृतौ कन्धर उच्चदेशे ।
कादम्बिनीमानहरौ करौ च
     भजामि नित्यं हरिकाकपक्षौ ॥ २७ ॥
कलदर्पणवद्‌विशदं सुखदं
     नवयौवनरूपधरं नृपतिम् ।
मणिकुण्डलकुन्तलशालिरतिं
     भज गण्डयुगं रविचन्द्ररुचिम् ॥ २८ ॥
खचितकनकमुक्ता रक्तवैदूर्यवासं
     मदनवदनलीला सर्वसौन्दर्यरासम् ।
अरुणविधुसकाशं कोटिसूर्यप्रकाशं
     घटितशिखिसुवीटं नौमि विष्णोः किरीटम् ॥ २९ ॥
यद्‌द्वारिदेशे न गतिर्गुहेन्द्र
     गणेशतारीरेशदिवाकराणाम् ।
आज्ञां विना यान्ति न कुञ्जमण्डलं
     तं कृष्णचन्द्रं जगदीश्वरं भजे ॥ ३० ॥

इति कृत्वा स्तुतिं ब्रह्मा श्रीकृष्णस्य महात्मनः ।
पुनः कृताञ्जलिर्भूत्वा स्वविज्ञप्तिं चकार ह ॥ ३१ ॥
अपराधं तु पुत्रस्य मातृवत्त्वं क्षमस्व च ।
अहं त्वन्नाभिकमलात्सम्भवोऽहं जगत्पते ॥ ३२ ॥
काहं लोकपतिः क्व त्वं कोटिब्रह्माण्डनायकः ।
तस्माद्‌व्रजपते देव रक्ष मां मधुसूदन ॥ ३३ ॥

जिनके कान्तिमान् कसौटी- सदृश एवं भृगुपद- अङ्कित विशाल वक्षःस्थलपर लक्ष्मी विलास करती हैं, जिनके गलेमें स्वर्णमणि एवं मोतियोंकी लड़ियोंसे युक्त तथा तारोंके समान झिलमिल प्रकाश करनेवाले तथा भ्रमरोंकी ध्वनिसे युक्त हीरोंके हार हैं, जो सिन्दूरवर्णकी सुन्दर अँगुलियोंसे वंशी बजा रहे हैं, जिनकी अँगुलियों में सोनेकी अंगूठियाँ सुशोभित हैं, जिनके दोनों हाथ द्विजोंको दान देनेवाले, चन्द्रमाके समान नखोंसे युक्त एवं कामदेवके वनके कदम्बवृक्षोंके पुष्पोंकी सुगन्धसे सुवासित हैं, जिनकी मन्दगति राजहंसकी भाँति सुन्दर है, जिनके कंधे गलेतक ऊँचे उठे हुए हैं, उन श्रीहरि- की मेघमालाका मान हरण करनेवाली मनोहर काकुल का मैं स्मरण करता हूँ। जो स्वच्छ दर्पणकी भाँति निर्मल, सुखद, नवयौवनकी कान्तिसे युक्त, मनुष्योंके रक्षक तथा मणिकुण्डलों एवं सुन्दर घुँघराले बालोंसे सुशोभित हैं, श्रीहरि के सूर्य तथा चन्द्रमा की भाँति प्रभा से युक्त उन दोनों कपोलों का मैं स्मरण करता हूँ ।। २५-२८ ॥

 

जो सुवर्ण तथा मुक्ता एवं वैदूर्यमणिसे जटित लाल वस्त्रका बना हुआ है, जो कामदेवके मुख- पर क्रीड़ा करनेवाले सम्पूर्ण सौन्दर्यसे विलसित है— जो अरुण - कान्ति तथा चन्द्र एवं करोड़ों सूर्येक समान प्रभा- सम्पन्न है और मयूरपिच्छसे अलंकृत है, श्रीकृष्णके उस मुकुटको मैं नमस्कार करता हूँ। जिनके द्वारदेशपर स्वामिकार्तिकेय, गणेश, इन्द्र, चन्द्र एवं सूर्यकी भी गति नहीं है; जिनकी आज्ञाके बिना कोई निकुञ्जमें प्रवेश नहीं कर सकता, उन जगदीश्वर श्रीकृष्णचन्द्रकी मैं आराधना करता हूँ  ॥ २–३० ॥

 

ब्रह्माजी इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्णका स्तवन करके पुनः हाथ जोड़कर कहने लगे- 'जगत्के स्वामी ! मैं आपके नाभि-कमलसे उत्पन्न हूँ; अतएव जिस प्रकार माता अपने पुत्रके अपराधोंको क्षमा कर देती है, उसी प्रकार आप भी मेरे अपराधोंको क्षमा कर दें। व्रजपते ! कहाँ तो मैं एक लोकका अधिपति और कहाँ आप करोड़ों ब्रह्माण्डोंके नायक ! अतएव व्रजेश, मधुसूदन ! देव ! आप मेरी रक्षा करें ॥ ३१–३

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 💟💐💖🌺जय श्री हरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे अनंत कोटि ब्रह्ममांडो के स्वामी
    मेरे सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: प्रणाम स्वीकार करें 🙏🌹🙏
    अनंत कोटि चरण वंदन नाथ🙏🥀🙏

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