रविवार, 14 जुलाई 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( श्रीवृन्दावनखण्ड ) ग्यारहवाँ अध्याय ( पोस्ट 04 )


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

( श्रीवृन्दावनखण्ड )

ग्यारहवाँ अध्याय ( पोस्ट 04 )

 

धेनुकासुर का उद्धार

 

राजोवाच ।।
मुने मुक्तिं कथं प्राप्तः पूर्वं को धेनुकासुरः ।।
कथं खरत्वमापन्न एतन्मे ब्रूहि तत्त्वतः ।। ३३ ।।


श्रीनारद उवाच ।।
वैरोचनेर्बलेः पुत्रो नाम्ना साहसिको बली ।।
नारीणां दशसाहस्रै रेमे वै गन्धमादने।।३४।।
वादित्राणां नूपुराणां शब्दोभूत्तद्वने महान्।।
गुहायामास्थितस्यापि श्रीकृष्णं स्मरतो मुनेः ।। ३५ ।।
दुर्वाससोऽथ तेनापि ध्यानभंगो बभूव ह ।।
निर्गतः पादुकारूढो दुर्वासाः कृशविग्रहः ।। ३६ ।।
दीर्घश्मश्रुर्यष्टि धरः क्रोधपुंजोनलद्युतिः ।।
यस्य शापाद्विश्वमिदं कंपते स जगाद ह ।। ३७ ।।


दुर्वासा उवाच ।।
उत्तिष्ठ गर्दभाकार गर्दभो भव दुर्मते ।।
वर्षाणां तु चतुर्लक्षं व्यतीते भारते पुनः ।। ३८ ।।
माधुरे मंडले दिव्ये पुण्ये तालवने वने ।।
बलदेवस्य हस्तेन मुक्तिस्ते भविताऽसुर ।। ३९ ।।


श्रीनारद उवाच ।।
तस्माद्बलस्य हस्तेन श्रीकृष्णस्तं जघान ह ।।
प्रह्लादाय वरो दत्तो न वध्यो मे तवान्वयः ।। ४० ।।

 

राजाने पूछा- मुने ! धेनुकासुर पूर्वजन्ममें कौन था ? उसे मुक्ति कैसे प्राप्त हुई ? तथा उसे गधेका शरीर क्यों मिला ? यह सब मुझे ठीक-ठीक बताइये ॥ ३३ ॥

 

श्रीनारदजीने कहा- विरोचनकुमार बलिका एक बलवान् पुत्र था, जिसका नाम था — साहसिक । वह दस हजार स्त्रियोंके साथ गन्धमादन पर्वतपर विहार कर रहा था। वहाँ वनमें नाना प्रकारके वाद्यों तथा रमणियोंके नूपुरोंका महान् शब्द होने लगा, जिससे उस पर्वतकी कन्दरामें रहकर श्रीकृष्णका चिन्तन करनेवाले दुर्वासा मुनिका ध्यान भङ्ग हो गया । वे खड़ाऊँ पहनकर बाहर निकले। उस समय मुनिवर दुर्वासाका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया था। दाढ़ी-मूँछ बहुत बढ़ गयी थीं। वे लाठीके सहारे चलते थे । क्रोधकी तो वे मूर्तिमान् राशि ही थे और अग्निके समान तेजस्वी जान पड़ते थे। दुर्वासा उन ऋषियोंमेंसे हैं, जिनके शापके भयसे यह सारा विश्व काँपता रहता है | वे बोले ।। ३४-३७ ॥

 

दुर्वासा ने कहा- दुर्बुद्धि असुर ! तू गदहेके  समान भोगासक्त है, इसलिये गदहा हो जा। आज से चार लाख वर्ष बीतने पर भारत में दिव्य माथुर मण्डलके अन्तर्गत पवित्र तालवन में बलदेवजी के हाथ से तेरी मुक्ति होगी ।। ३८-३९ ॥

 

नारदजी कहते हैं- राजन् ! उस शापके कारण ही भगवान् श्रीकृष्णने बलरामजीके हाथसे उसका वध करवाया; क्योंकि उन्होंने प्रह्लादजीको यह वर दे रखा है कि तुम्हारे वंशका कोई दैत्य मेरे हाथसे नहीं मारा जायगा ॥ ४० ॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहिता में वृन्दावनखण्ड के अन्तर्गत 'धेनुकासुर का उद्धार' नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ११ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 💐🌿🌷💐जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्रीमन् नारायण नारायण हरि: हरि:

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