श्रीगर्ग-संहिता
(गिरिराज खण्ड)
दूसरा
अध्याय (पोस्ट 01)
गोपों द्वारा गिरिराज-पूजन का महोत्सव
श्रीनारद उवाच -
श्रुत्वा वचो नन्दसुतस्य साक्षा-
च्छ्रीनन्दसन्नन्दवरा व्रजेशाः ।
सुविस्मिताः पूर्वकृतं विहाय
प्रचक्रिरे श्रीगिरिराजपूजाम् ॥१॥
नीत्वा बलीन्मैथिल नन्दराजः
सुतौ समानीय च रामकृष्णौ ।
यशोदया श्रीगिरिपूजनार्थं
समुत्सको गर्गयुतः प्रसन्नः ॥२॥
त्वरं समारुह्य महोन्नतं गजं
विचित्रवर्णं धृतहेमशृङ्खलम् ।
गोवर्धनान्तं प्रययौ गवां गणैः
शरद्घनैः शक्र इव प्रियायुतः ॥३॥
नन्दोपनन्दा वृषभानवश्च
पुत्रैश्च पौत्रैश्च सहांगनाभिः ।
समाययुः श्रीगिरिराजपार्श्वं
सर्वं समानीय च यज्ञभारम् ॥४॥
सहस्रबालार्कपरिस्फुरद्द्युति-
मारुह्य राधा शिबिकां सखीगणैः ।
शचीव दिव्याम्बररत्नभूषणा
बभौ चकोरीभ्रमरीसमाकुला ॥५॥
समागते पार्श्वगते स्वलंकृते
राजन्सखीकोटिसमावृते परे ।
सख्यौ विभाते ललिताविशाखे
चन्द्रानने चालितचारुचामरे ॥६॥
एवं रमा वै विरजा च माधवी
माया च कृष्णा नृप जह्नुनंदिनी ।
द्वात्रिंशदष्टौ च तथा हि षोडश
सख्यश्च तासां किल यूथ आगतः ॥७॥
श्रीमैथिलानां किल कोसलानां
तथा श्रुतीनां ऋषिरूपकाणाम् ।
तथा त्वयोध्यापुरवासिनीनां
श्रीयज्ञसीतावनवासिनीनाम् ॥८॥
रमादिवैकुण्ठनिवासिनीनां
तथोर्ध्ववैकुण्ठनिवासिनीनाम् ।
महोज्ज्वलद्वीपनिवासिनीनां
ध्रुवादिलोकाचलवासिनीनाम् ॥९॥
श्रीनारदजी कहते हैं— साक्षात् श्रीनन्दनन्दन की यह बात सुनकर श्रीनन्द और सनन्द आदि व्रजेश्वरगण बड़े विस्मित हुए।
फिर उन्होंने पहलेका निश्चय त्यागकर श्रीगिरिराज-पूजनका आयोजन किया। मिथिलेश्वर ! नन्दराज
अपने दोनों पुत्र - बलराम और श्रीकृष्णको तथा भेंटपूजाकी सामग्रीको लेकर यशोदाजीके
साथ गिरिराज-पूजनके लिये उत्कण्ठित हो प्रसन्नतापूर्वक गये । उनके साथ गर्गजी भी थे।
वे अपनी पत्नीके साथ बहुत ऊँचे चित्र-विचित्र व रँगे हुए तथा सोनेकी साँकल धारण करनेवाले
हाथी पर आरूढ़ हो, गौओंके
साथ गोवर्धन पर्वतके समीप गये। मानो इन्द्राणीके साथ इन्द्र ऐरावतपर
आरूढ़ शरदऋतु के श्वेत बादलोंके साथ उपस्थित हुए हों |नन्द, उपनन्द और वृषभानुगण अपने पुत्रों,
पोतों पत्नियोंके साथ यज्ञका सारा सम्भार लिये गिरिराज के पास
आ पहुँचे ।। १ - ४ ।।
सहस्रों बालरविके दीप्ति से प्रकासहित शिबिकामें आरूढ़ हो दिव्य
वस्त्रों तथा रत्नमय आभूषणों से विभूषित श्रीराधा सखी समुदाय के साथ वहाँ आकर उसी प्रकार सुशोभित हुईं, जैसे शची चकोरी और भ्रमरियों के साथ शोभा पाती हों ॥ ५ ॥
राजन् ! श्रीराधाके दोनों बगलमें आयी हुई विविध सहस्रों
ब्राह्मण-वृन्द गिरिराजका दर्शन करनेके लिये अलंकारोंसे अलंकृत तथा करोड़ों सखियोंसे
आवृत दो सर्वश्रेष्ठ चन्द्रमुखी सखियाँ-ललिता और विशाखा- चारु चंवर डुलाती हुई शोभा
पाती थीं। नरेश्वर । इसी प्रकार रमा, विरजा, माधवी, माया, यमुना और गङ्गा आदि बत्तीस
सखियाँ, आठ सखियाँ, सोलह सखियाँ और उन सबके यूथमें सम्मिलित असंख्य सखियाँ वहाँ आयीं
।। ६ - ७ ।।
मिथिलानिवासिनी, कोसल-प्रदेशवासिनी तथा अयोध्यापुरनिवासिनी,
श्रुतिरूपा, ऋषिरूपा, यज्ञसीतास्वरूपा तथा वनवासिनी गोपियोंका समुदाय भी वहाँ उपस्थित
हुआ । रमा आदि वैकुण्ठवासिनी देवियाँ, वैकुण्ठसे भी ऊपरके लोकोंमें रहनेवाली दिव्याङ्गनाएँ,
परम उज्ज्वल श्वेतद्वीपकी निवासिनी बालाएँ और ध्रुवादि लोकों तथा लोकाचलमें रहने- वाली
देवीरूपा गोपाङ्गनाओंका दल भी वहाँ आ गया ।। ८-९ ।।
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌹🍂🌺🥀जय श्रीकृष्ण🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय गिरिराज धरण गोवर्धन
गिरधारी महाराज श्री हरि:
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
राधे राधे जय श्री राधे
जय श्री राधे कृष्ण