बुधवार, 28 अगस्त 2024

श्रीगर्ग-संहिता ( गिरिराज खण्ड ) पहला अध्याय (पोस्ट 02)

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श्रीगर्ग-संहिता

( गिरिराज खण्ड )

पहला अध्याय (पोस्ट 02)

 

श्रीकृष्ण के द्वारा गोवर्धनपूजन का प्रस्ताव और उसकी विधि का वर्णन

 

सनंद उवाच -
हे नन्दसूनो हे तात त्वं साक्षाज्ज्ञानशेवधिः ।
कर्तव्या केन विधिना पूजाऽद्रेर्वद तत्त्वतः ॥१४॥


श्रीभगवानुवाच -
आलिप्य गोमयेनापि गिरिराजभुवं ह्यधः ।
धृत्वाऽथ सर्वसम्भारं भक्तियुक्तो जितेन्द्रियः ॥१५॥
सहस्रशीर्षामंत्रेणाद्रये स्नानं च कारयेत् ।
गंगाजलेन यमुनाजलेनापि द्विजैः सह ॥१६॥
शुक्लगोदुग्धधाराभिस्ततः पञ्चामृतैर्गिरिम् ।
स्नापयित्वा गन्धपुष्पैः पुनः कृष्णाजलेन वै ॥१७॥
वस्त्रं दिव्यं च नैवेद्यमासनं सर्वतोऽधिकम् ।
मालालंकारनिचयं दत्त्वा दीपावलिं पराम् ॥१८॥
ततः प्रदक्षिणां कुर्यान्नमस्कुर्यात्ततः परम् ।
कृतांजलिपुटो भूत्वा त्विदमेतदुदीरयेत् ॥१९॥
नमो वृन्दावनाङ्काय तुभ्यं गोलोकमौलिने ।
पूर्णब्रह्मातपत्राय नमो गोवर्धनाय च ॥२०॥
पुष्पांजलिं ततः कुर्यान्नीराजनमतः परम् ।
घण्टकांस्यमृदङ्गाद्यैर्वादित्रैर्मधुरस्वनैः ॥२१॥
वेदाहमेतं मंत्रेण वर्षलाजैः समाचरेत् ।
तत्समीपे चान्नकूटं कुर्याच्छ्रद्धासमन्वितः ॥२२॥
कचोलानां चतुःषष्टिपञ्चपंक्तिसमन्वितम् ।
तुलसीदलमिश्रैश्च श्रीगंगायमुनाजलैः ॥२३॥
षट्पञ्चाशत्तमैर्भागैः कुर्यात्सेवां समाहितः ।
ततोऽग्नीन् ब्राह्मणान्पूज्य गाः सुरान् गन्धपुष्पकैः ॥२४॥
भोजयित्वा द्विजवरान् सौगंधैर्मिष्टभोजनैः ।
अन्येभ्यश्चाश्वपाकेभ्यो दद्याद्‌भोजनमुत्तमम् ॥२५॥
गोपीगोपालवृन्दैश्च गवां नृत्यं च कारयेत् ।
मंगलैर्जयशब्दैश्च कुर्याद्‌गोवर्द्धनोत्सवम् ॥२६॥
यत्र गोवर्धनाभावस्तत्र पूजाविधिं शृणु ।
गोमयैर्वर्द्धनं कुर्यात्तदाकारं परोन्नतम् ॥२७॥
पुष्पव्यूहैर्लताजालैरिषिकाभिः समन्वितः ।
पूजनीयः सदा मर्त्यैर्गिरिर्गोवर्धनो भुवि ॥२८॥
शिलासमानं पुरटं क्षिप्त्वाऽद्रौ तच्छिलां नयेत् ।
गृह्णीयाद्यो विना स्वर्णं स महारौरवं व्रजेत् ॥२९॥
शालग्रामस्य देवस्य सेवनं कारयेत्सदा ।
पातकं न स्पृशेत्तं वै पद्मपत्रं यथा जलम् ॥३०॥
गिरिराजशिलासेवां यः करोति द्विजोत्तमः ।
सप्तद्वीपमहीतीर्थावगाहफलमेति सः ॥३१॥
गिरिराजमहापूजां वर्षे वर्षे करोति यः ।
इह सर्वसुखं भुक्त्वाऽमुत्र मोक्षं प्रयाति सः ॥३२॥

सन्नन्द बोले- नन्दनन्दन ! तात ! तुम तो साक्षात् ज्ञानकी निधि हो । गिरिराजकी पूजा किस विधिसे करनी होगी, यह ठीक-ठीक बताओ ॥ १४ ॥

श्रीभगवान् ने कहा- जहाँ गिरिराजकी पूजा करनी हो, वहाँ उनके नीचेकी धरतीको गोबर से लीप- पोतकर वहीं सब सामग्री रखनी चाहिये । इन्द्रियोंको वशमें रखकर बड़े भक्ति-भावसे 'सहस्रशीर्षा' मन्त्र पढ़ते हुए, ब्राह्मणोंके साथ रहकर गङ्गाजल या यमुनाजलसे गिरिराजको स्नान कराना चाहिये। फिर श्वेत गोदुग्ध की धारा से तथा पञ्चामृत से स्नान कराकर, पुनः यमुना- जलसे नहलाये। उसके बाद गन्ध, पुष्प, वस्त्र, आसन, भाँति-भाँतिके नैवेद्य, माला, आभूषण- समूह तथा उत्तम दीपमाला समर्पित करके गिरिराजकी परिक्रमा करे । इसके बाद साष्टाङ्ग प्रणाम करके, दोनों हाथ जोड़कर, इस प्रकार कहे — 'जो श्रीवृन्दावन के अङ्क में अवस्थित तथा गोलोक के मुकुट हैं, पूर्णब्रह्म परमात्मा के छत्ररूप उन गिरिराज गोवर्धन को हमारा बारंबार नमस्कार है ।' ॥१७-२०॥  

तदनन्तर पुष्पाञ्जलि अर्पित करे। उसके बाद घंटा, झाँझ और मृदङ्ग आदि मधुर ध्वनि करनेवाले बाजे बजाते हुए गिरिराजकी आरती करे। तदनन्तर 'वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम्' इत्यादि मन्त्र पढ़ते हुए उनके ऊपर लावाकी वर्षा करे और श्रद्धा पूर्वक गिरिराजके समीप अन्नकूट स्थापित करे। फिर चौसठ कटोरों को पाँच पङ्क्तियों में रखे और उनमें तुलसीदल- मिश्रित गङ्गा-यमुनाका जल भर दे। फिर एकाग्रचित्त हो गिरिराजकी सेवामें छप्पन भोग अर्पित करे । तत्पश्चात् अग्नि में होम करके ब्राह्मणोंकी पूजा करे तथा गौओं और देवताओंपर भी गन्ध-पुष्प चढ़ाये। अन्तमें श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको सुगन्धित मिष्टान्न भोजन कराकर, अन्य लोगों को —यहाँतक कि चण्डाल भी छूटने न पायें- उत्तम भोजन दे। इसके बाद गोपियों और गोपों के समुदाय गौओं के सामने नृत्य करें, मङ्गल- गीत गायें और जय-जयकार करते पूजनोत्सव सम्पन्न करें ।। २४ - २६ ।।

जहाँ गोवर्धन नहीं हैं, वहाँ गोवर्धन पूजाकी क्या विधि है, यह सुनो। गोबर से गोवर्धनका बहुत ऊँचा आकार बनाये। फिर उन्हें पुष्प-समूहों, लता - जालें और सींकोंसे सुशोभित करके, उसे ही गोवर्धन-गिरि मानकर सदा भूतलपर मनुष्योंको उसकी पूजा करनी चाहिये ।। २७ - २।।

यदि कोई गोवर्धनकी शिला ले जाकर पूजन करना चाहे तो जितना बड़ा प्रस्तर ले जाय, उतना ही सुवर्ण उस पर्वतपर छोड़ दे। जो बिना सुवर्ण दिन वहाँकी शिला ले जायगा, वह महारौरव नरक में पड़ेगा। शालग्राम भगवान्‌ की सदा सेवा करनी चाहिये। शालग्रामके पूजक को पातक उसी तरह स्पर्श नहीं करते, जैसे पद्मपत्र पर जलका लेप नहीं होता। जो श्रेष्ठ द्विज गिरिराज-शिलाकी सेवा करता है, वह सा द्वीपोंसे युक्त भूमण्डलके तीर्थोंमें स्नान करनेका फपाता है। जो प्रतिवर्ष गिरिराजकी महापूजा करता वह इस लोकमें सम्पूर्ण सुख भोगकर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।। २७ – ३२ ॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहिता में गिरिराजखण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद - बहुलाश्व-संवाद में 'श्रीगिरिराज की पूजा-विधिवर्णन' नामक पहला अध्याय पूरा हुआ ॥ १ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से 

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀🌷जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    जय हो गोवर्धन गिरधारी महाराज
    मेरी भी आकर सुनलो
    ओ घट घट के वासी !!

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