सोमवार, 18 नवंबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०५)

विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन

श्रीशुक उवाच -
स एवं भगवान् पृष्टः क्षत्त्रा कौषारविर्मुनिः ।
पुंसां निःश्रेयसार्थेन तमाह बहु मानयन् ॥ १७ ॥

मैत्रेय उवाच -
साधु पृष्टं त्वया साधो लोकान् साधु अनुगृह्णता ।
कीर्तिं वितन्वता लोके आत्मनोऽधोक्षजात्मनः ॥ १८ ॥
नैतच्चित्रं त्वयि क्षत्तः बादरायणवीर्यजे ।
गृहीतोऽनन्यभावेन यत्त्वया हरिरीश्वरः ॥ १९ ॥
माण्डव्यशापाद् भगवान् प्रजासंयमनो यमः ।
भ्रातुः क्षेत्रे भुजिष्यायां जातः सत्यवतीसुतात् ॥ २० ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—जब विदुरजीने जीवोंके कल्याणके लिये इस प्रकार प्रश्न किया, तब तो मुनिश्रेष्ठ भगवान्‌ मैत्रेयजी ने उनकी बहुत बड़ाई करते हुए यों कहा ॥ १७ ॥
श्रीमैत्रेयजी बोले—साधुस्वभाव विदुर जी ! आपने सब जीवों पर अत्यन्त अनुग्रह करके यह बड़ी अच्छी बात पूछी है। आपका चित्त तो सर्वदा श्रीभगवान्‌ में ही लगा रहता है, तथापि इससे संसार में भी आपका बहुत सुयश फैलेगा ॥ १८ ॥ आप श्रीव्यासजी के औरस पुत्र हैं; इसलिये आपके लिये यह कोई बड़ी बात नहीं है कि आप अनन्यभाव से सर्वेश्वर श्रीहरि के ही आश्रित हो गये हैं ॥ १९ ॥ आप प्रजाको दण्ड देनेवाले भगवान्‌ यम ही हैं। माण्डव्य ऋषिका शाप होनेके कारण ही आपने श्रीव्यासजीके वीर्यसे उनके भाई विचित्रवीर्यकी भोगपत्नी दासीके गर्भसे जन्म लिया है ॥ २० ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


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