॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
ब्रह्माजी द्वारा भगवान् की स्तुति
ब्रह्मोवाच –
अह्न्यापृतार्तकरणा निशि निःशयाना ।
नानामनोरथधिया क्षणभग्ननिद्राः ।
दैवाहतार्थरचना ऋषयोऽपि देव ।
युष्मत् प्रसङ्गविमुखा इह संसरन्ति ॥ १० ॥
त्वं भक्तियोगपरिभावितहृत्सरोज ।
आस्से श्रुतेक्षितपथो ननु नाथ पुंसाम् ।
यद् यद् धिया ते उरुगाय विभावयन्ति ।
तत्तद् वपुः प्रणयसे सदनुग्रहाय ॥ ११ ॥
देव ! औरोंकी तो बात ही क्या—जो साक्षात् मुनि हैं, वे भी यदि आपके कथाप्रसङ्ग से विमुख रहते हैं तो उन्हें संसार में फँसना पड़ता है। वे दिनमें अनेक प्रकार के व्यापारों के कारण विक्षिप्तचित्त रहते हैं, रात्रि में निद्रामें अचेत पड़े रहते हैं; उस समय भी तरह-तरह के मनोरथों के कारण क्षण-क्षणमें उनकी नींद टूटती रहती है तथा दैववश उनकी अर्थसिद्धि के सब उद्योग भी विफल होते रहते हैं ॥ १० ॥ नाथ ! आपका मार्ग केवल गुण-श्रवणसे ही जाना जाता है। आप निश्चय ही मनुष्योंके भक्तियोगके द्वारा परिशुद्ध हुए हृदयकमलमें निवास करते हैं। पुण्यश्लोक प्रभो ! आपके भक्तजन जिस-जिस भावनासे आपका चिन्तन करते हैं, उन साधु पुरुषोंपर अनुग्रह करनेके लिये आप वही- वही रूप धारण कर लेते हैं ॥ ११ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🥀💖🌹जय श्रीहरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हे करुणामय दीनदयाल
भक्तवत्सल द्वारकावासीगोविंद
आपका हर क्षण सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश:चरण वंदन 🙏🙏
नारायण नारायण नारायण नारायण