॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)
ब्रह्माजीकी रची हुई अनेक प्रकारकी सृष्टिका वर्णन
स आत्मानं मन्यमानः कृतकृत्यमिवात्मभूः ।
तदा मनून् ससर्जान्ते मनसा लोकभावनान् ॥ ४९ ॥
तेभ्यः सोऽसृजत्स्वीयं पुरं पुरुषमात्मवान् ।
तान् दृष्ट्वा ये पुरा सृष्टाः प्रशशंसुः प्रजापतिम् ॥ ५० ॥
अहो एतत् जगत्स्रष्टः सुकृतं बत ते कृतम् ।
प्रतिष्ठिताः क्रिया यस्मिन् साकं अन्नमदाम हे ॥ ५१ ॥
तपसा विद्यया युक्तो योगेन सुसमाधिना ।
ऋषीन् ऋषिः हृषीकेशः ससर्जाभिमताः प्रजाः ॥ ५२ ॥
तेभ्यश्चैकैकशः स्वस्य देहस्यांशमदादजः ।
यत्तत् समाधियोगर्द्धि तपोविद्याविरक्तिमत् ॥ ५३ ॥
एक बार ब्रह्माजीने अपनेको कृतकृत्य-सा अनुभव किया। उस समय अन्तमें उन्होंने अपने मनसे मनुओंकी सृष्टि की। ये सब प्रजाकी वृद्धि करनेवाले हैं ॥ ४९ ॥ मनस्वी ब्रह्माजीने उनके लिये अपना पुरुषाकार शरीर त्याग दिया। मनुओंको देखकर उनसे पहले उत्पन्न हुए देवता-गन्धर्वादि ब्रह्माजी की स्तुति करने लगे ॥ ५० ॥ वे बोले, ‘विश्वकर्ता ब्रह्माजी ! आपकी यह (मनुओंकी) सृष्टि बड़ी ही सुन्दर है। इसमें अग्रिहोत्र आदि सभी कर्म प्रतिष्ठित हैं। इसकी सहायतासे हम भी अपना अन्न (हविर्भाग) ग्रहण कर सकेंगे’ ॥ ५१ ॥
फिर आदिऋषि ब्रह्माजी ने इन्द्रियसंयमपूर्वक तप, विद्या, योग और समाधि से सम्पन्न हो अपनी प्रिय सन्तान ऋषिगण की रचना की और उनमें से प्रत्येक को अपने समाधि, योग, ऐश्वर्य, तप, विद्या और वैराग्यमय शरीर का अंश दिया ॥ ५२-५३ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
तृतीयस्कन्धे विंशोऽध्यायः ॥ २० ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
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अतीव उत्तम भावामृत.., वंदन
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जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय