बुधवार, 2 जुलाई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

अष्टाङ्गयोग की विधि

यच्छ्रीनिकेतमलिभिः परिसेव्यमानं
     भूत्या स्वया कुटिलकुन्तलवृन्दजुष्टम् ।
मीनद्वयाश्रयमधिक्षिपदब्जनेत्रं
     ध्यायेन् मनोमयमतन्द्रित उल्लसद्भ्रु् ॥ ३० ॥
तस्यावलोकमधिकं कृपयातिघोर
     तापत्रयोपशमनाय निसृष्टमक्ष्णोः ।
स्निग्धस्मितानुगुणितं विपुलप्रसादं
     ध्यायेच्चिरं विपुलभावनया गुहायाम् ॥ ३१ ॥
हासं हरेरवनताखिललोकतीव्र
     शोकाश्रुसागरविशोषणमत्युदारम् ।
सम्मोहनाय रचितं निजमाययास्य
     भ्रूमण्डलं मुनिकृते मकरध्वजस्य ॥ ३२ ॥

कालीकाली घुँघराली अलकावलीसे मण्डित भगवान्‌का मुखमण्डल अपनी छवि के द्वारा भ्रमरों से सेवित कमलकोशका भी तिरस्कार कर रहा है और उसके कमलसदृश विशाल एवं चञ्चल नेत्र उस कमलकोशपर उछलते हुए मछलियोंके जोड़ेकी शोभाको मात कर रहे हैं। उन्नत भ्रूलताओंसे सुशोभित भगवान्‌के ऐसे मनोहर मुखारविन्दकी मनमें धारणा करके आलस्यरहित हो उसीका ध्यान करे ॥ ३० ॥ हृदयगुहा में चिरकालतक भक्तिभाव से भगवान्‌के नेत्रोंकी चितवनका ध्यान करना चाहिये, जो कृपासे और प्रेमभरी मुसकानसे क्षण-क्षण अधिकाधिक बढ़ती रहती है, विपुल प्रसादकी वर्षा करती रहती है और भक्तजनोंके अत्यन्त घोर तीनों तापोंको शान्त करनेके लिये ही प्रकट हुई है ॥ ३१ ॥ श्रीहरि का हास्य प्रणतजनों के तीव्र-से-तीव्र शोक के अश्रुसागर को सुखा देता है और अत्यन्त उदार है। मुनियोंके हितके लिये कामदेवको मोहित करनेके लिये ही अपनी मायासे श्रीहरिने अपने भ्रूमण्डलको बनाया है—उनका ध्यान करना चाहिये ॥ ३२ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
    हरि हरये नमः कृष्ण यादवाय नमः
    गोपाल गोविंद राम श्री मधुसूदन
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!

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