शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

मनुष्ययोनि को प्राप्त हुए जीव की गति का वर्णन

कृमिभिः क्षतसर्वाङ्गः सौकुमार्यात्प्रतिक्षणम् ।
मूर्च्छां आप्नोति उरुक्लेशः तत्रत्यैः क्षुधितैर्मुहुः ॥ ६ ॥
कटुतीक्ष्णोष्णलवण रूक्षाम्लादिभिरुल्बणैः ।
मातृभुक्तैरुपस्पृष्टः सर्वाङ्गोत्थितवेदनः ॥ ७ ॥
उल्बेन संवृतस्तस्मिन् अन्त्रैश्च बहिरावृतः ।
आस्ते कृत्वा शिरः कुक्षौ भुग्नपृष्ठशिरोधरः ॥ ८ ॥
अकल्पः स्वाङ्गचेष्टायां शकुन्त इव पञ्जरे ।
तत्र लब्धस्मृतिर्दैवात् कर्म जन्मशतोद्भपवम् ।
स्मरन् दीर्घमनुच्छ्वासं शर्म किं नाम विन्दते ॥ ९ ॥

वह (जीव) सुकुमार तो होता ही है; इसलिये जब वहाँके भूखे कीड़े उसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग नोचते हैं, तब अत्यन्त क्लेशके कारण वह क्षण-क्षणमें अचेत हो जाता है ॥ ६ ॥ माताके खाये हुए कड़वे, तीखे, गरम, नमकीन, रूखे और खट्टे आदि उग्र पदार्थोंका स्पर्श होनेसे उसके सारे शरीरमें पीड़ा होने लगती है ॥ ७ ॥ वह जीव माताके गर्भाशयमें झिल्लीसे लिपटा और आँतोंसे घिरा रहता है। उसका सिर पेटकी ओर तथा पीठ और गर्दन कुण्डलाकार मुड़े रहते हैं ॥ ८ ॥
वह पिंजड़े में बंद पक्षी के समान पराधीन एवं अङ्गोंको हिलाने-डुलाने में भी असमर्थ रहता है। इसी समय अदृष्ट की प्रेरणासे उसे स्मरणशक्ति प्राप्त होती है। तब अपने सैंकड़ों जन्मोंके कर्म याद आ जाते हैं और वह बेचैन हो जाता है तथा उसका दम घुटने लगता है। ऐसी अवस्था में उसे क्या शान्ति मिल सकती है ? ॥ ९ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)   पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🪷🌹🥀🪷जय श्री हरि: !!
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव:
    हरि:शरणम् !! हरि:शरणम् !!
    हरि:शरणम् !!!

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श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

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