गुरुवार, 31 जुलाई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

मनुष्ययोनि को प्राप्त हुए जीव की गति का वर्णन

कपिल उवाच -
एवं कृतमतिर्गर्भे दशमास्यः स्तुवन्नृषिः ।
सद्यः क्षिपत्यवाचीनं प्रसूत्यै सूतिमारुतः ॥ २२ ॥
तेनावसृष्टः सहसा कृत्वावाक् शिर आतुरः ।
विनिष्क्रामति कृच्छ्रेण निरुच्छ्वासो हतस्मृतिः ॥ २३ ॥
पतितो भुव्यसृङ्‌मूत्रे विष्ठाभूरिव चेष्टते ।
रोरूयति गते ज्ञाने विपरीतां गतिं गतः ॥ २४ ॥
परच्छन्दं न विदुषा पुष्यमाणो जनेन सः ।
अनभिप्रेतमापन्नः प्रत्याख्यातुमनीश्वरः ॥ २५ ॥
शायितोऽशुचिपर्यङ्के जन्तुः स्वेदजदूषिते ।
नेशः कण्डूयनेऽङ्गानां आसनोत्थानचेष्टने ॥ २६ ॥
तुदन्त्यामत्वचं दंशा मशका मत्कुणादयः ।
रुदन्तं विगतज्ञानं कृमयः कृमिकं यथा ॥ २७ ॥

कपिलदेवजी कहते हैं—माता ! वह दस महीने का जीव गर्भ में ही जब इस प्रकार विवेकसम्पन्न होकर भगवान्‌ की स्तुति करता है, तब उस अधोमुख बालक को प्रसवकाल की वायु तत्काल बाहर आने के लिये ढकेलती है ॥२२॥ उसके सहसा ठेलने पर वह बालक अत्यन्त व्याकुल हो नीचे सिर करके बड़े कष्ट से बाहर निकलता है। उस समय उसके श्वास की गति रुक जाती है और पूर्वस्मृति नष्ट हो जाती है ॥२३॥ पृथ्वीपर माता के रुधिर और मूत्र में पड़ा हुआ वह बालक विष्ठा के कीड़े के समान छटपटाता है ।  उसका गर्भवास  का सारा ज्ञान नष्ट हो जाता है और  वह विपरीत गति (देहाभिमानरूप अज्ञान-दशा)-को प्राप्त होकर बार-बार जोर-जोरसे रोता है ॥२४ ॥ फिर जो लोग उसका अभिप्राय नहीं समझ सकते, उनके द्वारा उसका पालन-पोषण होता है। ऐसी अवस्थामें उसे जो प्रतिकूलता प्राप्त होती है, उसका निषेध करनेकी शक्ति भी उसमें नहीं होती ॥ २५ ॥ जब उस जीवको शिशु-अवस्थामें मैली-कुचैली खाटपर सुला दिया जाता है, जिसमें खटमल आदि स्वेदज जीव चिपटे रहते हैं, तब उसमें शरीरको खुजलाने, उठाने अथवा करवट बदलनेकी भी सामर्थ्य न होनेके कारण वह बड़ा कष्ट पाता है ॥ २६ ॥ उसकी त्वचा बड़ी कोमल होती है; उसे डाँस, मच्छर और खटमल आदि उसी प्रकार काटते रहते हैं, जैसे बड़े कीड़े को छोटे कीड़े। इस समय उसका गर्भावस्थाका सारा ज्ञान जाता रहता है, सिवा रोनेके वह कुछ नहीं कर सकता ॥ २७ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. नारायण नारायण नारायण नारायण
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव !!
    हरि:शरणम् !! हरि:शरणम् !!
    हरि:शरणम् !! 🙏🙏

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श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इकतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)

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