सोमवार, 8 सितंबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - तीसरा अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध - तीसरा अध्याय..(पोस्ट०३)

सती का पिता के यहाँ यज्ञोत्सव में जाने के लिये आग्रह करना

ऋषिरुवाच -
एवं गिरित्रः प्रिययाभिभाषितः
     प्रत्यभ्यधत्त प्रहसन् सुहृत्प्रियः ।
संस्मारितो मर्मभिदः कुवागिषून्
     यानाह को विश्वसृजां समक्षतः ॥ १५ ॥

श्रीभगवानुवाच -
त्वयोदितं शोभनमेव शोभने
     अनाहुता अप्यभियन्ति बन्धुषु ।
ते यद्यनुत्पादितदोषदृष्टयो
     बलीयसान् आत्म्यमदेन मन्युना ॥ १६ ॥
विद्यातपोवित्तवपुर्वयःकुलैः
     सतां गुणैः षड्‌भिरसत्तमेतरैः ।
स्मृतौ हतायां भृतमानदुर्दृशः
     स्तब्धा न पश्यन्ति हि धाम भूयसाम् ॥ १७ ॥
नैतादृशानां स्वजनव्यपेक्षया
     गृहान् प्रतीयादनवस्थितात्मनाम् ।
येऽभ्यागतान् वक्रधियाभिचक्षते
     आरोपितभ्रूभिरमर्षणाक्षिभिः ॥ १८ ॥
तथारिभिर्न व्यथते शिलीमुखैः
     शेतेऽर्दिताङ्‌गो हृदयेन दूयता ।
स्वानां यथा वक्रधियां दुरुक्तिभिः
     दिवानिशं तप्यति मर्मताडितः ॥ १९ ॥

श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—प्रिया सतीजीके इस प्रकार प्रार्थना करनेपर अपने आत्मीयोंका प्रिय करनेवाले भगवान्‌ शङ्करको दक्षप्रजापतिके उन मर्मभेदी दुर्वचनरूप बाणों का स्मरण हो आया, जो उन्होंने समस्त प्रजापतियों के सामने कहे थे; तब वे हँसकर बोले ॥ १५ ॥
भगवान्‌ शङ्करने कहा—सुन्दरि ! तुमने जो कहा कि अपने बन्धुजन के यहाँ बिना बुलाये भी जा सकते हैं, सो तो ठीक ही है; किन्तु ऐसा तभी करना चाहिये, जब उनकी दृष्टि अतिशय प्रबल देहाभिमानसे उत्पन्न हुए मद और क्रोधके कारण द्वेष-दोषसे युक्त न हो गयी हो ॥ १६ ॥ विद्या, तप, धन, सुदृढ़ शरीर, युवावस्था और उच्च कुल—ये छ: सत्पुरुषोंके तो गुण हैं, परन्तु नीच पुरुषोंमें ये ही अवगुण हो जाते हैं; क्योंकि इनसे उनका अभिमान बढ़ जाता है और दृष्टि दोषयुक्त हो जाती है एवं विवेक-शक्ति नष्ट हो जाती है। इसी कारण वे महापुरुषोंका प्रभाव नहीं देख पाते ॥ १७ ॥ इसीसे जो अपने यहाँ आये हुए पुरुषोंको कुटिल बुद्धिसे भौं चढ़ाकर रोषभरी दृष्टिसे देखते हैं, उन अव्यवस्थितचित्त लोगोंके यहाँ ‘ये हमारे बान्धव हैं’ ऐसा समझकर कभी नहीं जाना चाहिये ॥ १८ ॥ देवि ! शत्रुओंके बाणोंसे बिंध जानेपर भी ऐसी व्यथा नहीं होती, जैसी अपने कुटिलबुद्धि स्वजनोंके कुटिल वचनोंसे होती है। क्योंकि बाणोंसे शरीर छिन्न-भिन्न हो जानेपर तो जैसे-तैसे निद्रा आ जाती है, किन्तु कुवाक्योंसे मर्मस्थान विद्ध हो जानेपर तो मनुष्य हृदयकी पीड़ासे दिन-रात बेचैन रहता है ॥ १९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌺💟🌺ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे त्रिपुरारी उमापति नीलकंठ महादेव 🙏

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