बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - पंद्रहवां अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

महाराज पृथुका आविर्भाव और राज्याभिषेक

मैत्रेय उवाच -
अथ तस्य पुनर्विप्रैः अपुत्रस्य महीपतेः ।
बाहुभ्यां मथ्यमानाभ्यां मिथुनं समपद्यत ॥ १ ॥
तद् दृष्ट्वा मिथुनं जातं ऋषयो ब्रह्मवादिनः ।
ऊचुः परमसन्तुष्टा विदित्वा भगवत्कलाम् ॥ २ ॥

ऋषय ऊचुः -
एष विष्णोर्भगवतः कला भुवनपालिनी ।
इयं च लक्ष्म्याः सम्भूतिः पुरुषस्यानपायिनी ॥ ३ ॥
अयं तु प्रथमो राज्ञां पुमान् प्रथयिता यशः ।
पृथुर्नाम महाराजो भविष्यति पृथुश्रवाः ॥ ४ ॥
इयं च सुदती देवी गुणभूषणभूषणा ।
अर्चिर्नाम वरारोहा पृथुमेवावरुन्धती ॥ ५ ॥
एष साक्षात् हरेरंशो जातो लोकरिरक्षया ।
इयं च तत्परा हि श्रीः अनुजज्ञेऽनपायिनी ॥ ६ ॥

मैत्रेय उवाच -
प्रशंसन्ति स्म तं विप्रा गन्धर्वप्रवरा जगुः ।
मुमुचुः सुमनोधाराः सिद्धा नृत्यन्ति स्वःस्त्रियः ॥ ७ ॥
शङ्‌खतूर्यमृदङ्‌गाद्या नेदुर्दुन्दुभयो दिवि ।
तत्र सर्व उपाजग्मुः देवर्षिपितॄणां गणाः ॥ ८ ॥
ब्रह्मा जगद्गुगरुर्देवैः सहासृत्य सुरेश्वरैः ।
वैन्यस्य दक्षिणे हस्ते दृष्ट्वा चिह्नं गदाभृतः ॥ ९ ॥
पादयोः अरविन्दं च तं वै मेने हरेः कलाम् ।
यस्याप्रतिहतं चक्रं अंशः स परमेष्ठिनः ॥ १० ॥

श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! इसके बाद ब्राह्मणोंने पुत्रहीन राजा वेनकी भुजाओंका मन्थन किया, तब उनसे एक स्त्री-पुरुषका जोड़ा प्रकट हुआ ॥ १ ॥ ब्रह्मवादी ऋषि उस जोड़ेको उत्पन्न हुआ देख और उसे भगवान्‌का अंश जान बहुत प्रसन्न हुए और बोले ॥ २ ॥
ऋषियोंने कहा—यह पुरुष भगवान्‌ विष्णुकी विश्वपालिनी कलासे प्रकट हुआ है और यह स्त्री उन परम पुरुषकी अनपायिनी (कभी अलग न होनेवाली) शक्ति लक्ष्मीजीका अवतार है ॥ ३ ॥ इनमेंसे जो पुरुष है वह अपने सुयशका प्रथन—विस्तार करनेके कारण परम यशस्वी ‘पृथु’ नामक सम्राट् होगा। राजाओंमें यही सबसे पहला होगा ॥ ४ ॥ यह सुन्दर दाँतोंवाली एवं गुण और आभूषणोंको भी विभूषित करनेवाली सुन्दरी इन पृथुको ही अपना पति बनायेगी। इसका नाम अर्चि होगा ॥ ५ ॥ पृथुके रूपमें साक्षात् श्रीहरिके अंशने ही संसारकी रक्षाके लिये अवतार लिया है और अर्चिके रूपमें, निरन्तर भगवान्‌की सेवामें रहनेवाली उनकी नित्य सहचरी श्रीलक्ष्मीजी ही प्रकट हुई हैं ॥ ६ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! उस समय ब्राह्मण लोग पृथुकी स्तुति करने लगे, श्रेष्ठ गन्धर्वोंने गुणगान किया, सिद्धोंने पुष्पोंकी वर्षा की, अप्सराएँ नाचने लगीं ॥ ७ ॥ आकाशमें शङ्ख, तुरही, मृदङ्ग और दुन्दुभि आदि बाजे बजने लगे। समस्त देवता, ऋषि और पितर अपने-अपने लोकोंसे वहाँ आये ॥ ८ ॥ जगद्गुरु ब्रह्माजी देवता और देवेश्वरोंके साथ पधारे। उन्होंने वेनकुमार पृथुके दाहिने हाथमें भगवान्‌ विष्णुकी हस्तरेखाएँ और चरणोंमें कमलका चिह्न देखकर उन्हें श्रीहरिका ही अंश समझा; क्योंकि जिसके हाथमें दूसरी रेखाओंसे बिना कटा हुआ चक्रका चिह्न होता है, वह भगवान्‌का ही अंश होता है ॥ ९-१० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


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