॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
पंचम स्कन्ध – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
ऋषभजीका अपने पुत्रोंको उपदेश देना और स्वयं अवधूतवृत्ति ग्रहण करना
भूतेषु वीरुद्भ्य उदुत्तमा ये सरीसृपास्तेषु सबोधनिष्ठाः
ततो मनुष्याः प्रमथास्ततोऽपि गन्धर्वसिद्धा विबुधानुगा ये ||२१||
देवासुरेभ्यो मघवत्प्रधाना दक्षादयो ब्रह्मसुतास्तु तेषाम्
भवः परः सोऽथ विरिञ्चवीर्यः स मत्परोऽहं द्विजदेवदेवः ||२२||
न ब्राह्मणैस्तुलये भूतमन्यत्पश्यामि विप्राः किमतः परं तु
यस्मिन्नृभिः प्रहुतं श्रद्धयाहमश्नामि कामं न तथाग्निहोत्रे ||२३||
धृता तनूरुशती मे पुराणी येनेह सत्त्वं परमं पवित्रम्
शमो दमः सत्यमनुग्रहश्च तपस्तितिक्षानुभवश्च यत्र ||२४||
मत्तोऽप्यनन्तात्परतः परस्मात्स्वर्गापवर्गाधिपतेर्न किञ्चित्
येषां किमु स्यादितरेण तेषामकिञ्चनानां मयि भक्तिभाजाम् ||२५||
सर्वाणि मद्धिष्ण्यतया भवद्भिश्चराणि भूतानि सुता ध्रुवाणि
सम्भावितव्यानि पदे पदे वो विविक्तदृग्भिस्तदु हार्हणं मे ||२६||
मनोवचोदृक्करणेहितस्य साक्षात्कृतं मे परिबर्हणं हि
विना पुमान्येन महाविमोहात्कृतान्तपाशान्न विमोक्तुमीशेत् ||२७||
(श्रीऋषभदेवजी कह रहे हैं) अन्य सब भूतोंकी अपेक्षा वृक्ष अत्यन्त श्रेष्ठ हैं, उनसे चलनेवाले जीव श्रेष्ठ हैं और उनमें भी कीटादिकी अपेक्षा ज्ञानयुक्त पशु आदि श्रेष्ठ हैं। पशुओंसे मनुष्य, मनुष्योंसे प्रमथगण, प्रमथोंसे गन्धर्व, गन्धर्वोंसे सिद्ध और सिद्धोंसे देवताओंके अनुयायी किन्नरादि श्रेष्ठ हैं ॥ २१ ॥ उनसे असुर, असुरोंसे देवता और देवताओंसे भी इन्द्र श्रेष्ठ हैं। इन्द्रसे भी ब्रह्माजीके पुत्र दक्षादि प्रजापति श्रेष्ठ हैं, ब्रह्माजीके पुत्रोंमें रुद्र सबसे श्रेष्ठ हैं। वे ब्रह्माजीसे उत्पन्न हुए हैं, इसलिये ब्रह्माजी उनसे श्रेष्ठ हैं। वे भी मुझसे उत्पन्न हैं और मेरी उपासना करते हैं, इसलिये मैं उनसे भी श्रेष्ठ हूँ। परन्तु ब्राह्मण मुझसे भी श्रेष्ठ हैं, क्योंकि मैं उन्हें पूज्य मानता हूँ ॥ २२ ॥
[सभामें उपस्थित ब्राह्मणोंको लक्ष्य करके] विप्रगण ! दूसरे किसी भी प्राणी को मैं ब्राह्मणों के समान भी नहीं समझता, फिर उनसे अधिक तो मान ही कैसे सकता हूँ। लोग श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों के मुख में जो अन्नादि आहुति डालते हैं, उसे मैं जैसी प्रसन्नता से ग्रहण करता हूँ वैसे अग्निहोत्र में होम की हुई सामग्री को स्वीकार नहीं करता ॥ २३ ॥ जिन्होंने इस लोकमें अध्ययनादि के द्वारा मेरी वेदरूपा अति सुन्दर और पुरातन मूर्ति को धारण कर रखा है तथा जो परम पवित्र सत्त्वगुण, शम, दम, सत्य, दया, तप, तितिक्षा और ज्ञानादि आठ गुणोंसे सम्पन्न हैं—उन ब्राह्मणोंसे बढक़र और कौन हो सकता है ॥ २४ ॥ मैं ब्रह्मादिसे भी श्रेष्ठ और अनन्त हूँ तथा स्वर्ग-मोक्ष आदि देनेकी भी सामर्थ्य रखता हूँ; किन्तु मेरे अकिंचन भक्त ऐसे नि:स्पृह होते हैं कि वे मुझसे भी कभी कुछ नहीं चाहते; फिर राज्यादि अन्य वस्तुओंकी तो वे इच्छा ही कैसे कर सकते हैं ? ॥ २५ ॥ पुत्रो ! तुम सम्पूर्ण चराचर भूतोंको मेरा ही शरीर समझकर शुद्ध बुद्धिसे पद-पदपर उनकी सेवा करो, यही मेरी सच्ची पूजा है ॥ २६ ॥ मन, वचन, दृष्टि तथा अन्य इन्द्रियोंकी चेष्टाओंका साक्षात् फल मेरा इस प्रकारका पूजन ही है। इसके बिना मनुष्य अपनेको महामोहमय कालपाशसे छुड़ा नहीं सकता ॥ २७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
💐💖💐जय श्री हरि: !!🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!