रविवार, 14 दिसंबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण पंचम स्कन्ध - पांचवां अध्याय..(पोस्ट०७)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
पंचम स्कन्ध – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)

ऋषभजीका अपने पुत्रोंको उपदेश देना और स्वयं अवधूतवृत्ति ग्रहण करना

यर्हि वाव स भगवान्लोकमिमं योगस्याद्धा प्रतीपमिवाचक्षाण-स्तत्प्रतिक्रियाकर्म बीभत्सितमिति व्रतमाजगरमास्थितः शयान एवाश्नाति पिबति खादत्यवमेहति हदति स्म चेष्टमान
उच्चरित आदिग्धोद्देशः ||३२||
तस्य ह यः पुरीषसुरभिसौगन्ध्यवायुस्तं देशं दशयोजनं समन्तात्सुरभिं चकार ||३३||
एवं गोमृगकाकचर्यया व्रजंस्तिष्ठन्नासीनः शयानः काकमृगगोचरितः पिबति खादत्यवमेहति स्म ||३४||
इति नानायोगचर्याचरणो भगवान्कैवल्यपतिरृषभोऽविरतपरम-महानन्दानुभव आत्मनि
सर्वेषां भूतानामात्मभूते भगवति वासुदेव आत्मनोऽव्यवधानानन्त-रोदरभावेन सिद्धसमस्तार्थपरिपूर्णो योगैश्वर्याणि वैहायसमनोजवान्तर्धानपरकायप्रवेशदूरग्रहणादीनि यदृच्छयोपगतानि नाञ्जसा नृप हृदयेनाभ्यनन्दत् ||३५||

जब भगवान्‌ ऋषभदेव ने देखा कि यह जनता योगसाधनमें विघ्नरूप है और इससे बचने का उपाय बीभत्सवृत्ति से रहना ही है, तब उन्होंने अजगरवृत्ति धारण कर ली। वे लेटे-ही-लेटे खाने-पीने, चबाने और मल-मूत्र त्याग करने लगे। वे अपने त्यागे हुए मलमें लोट-लोटकर शरीरको उससे सान लेते ॥ ३२ ॥ (किन्तु) उनके मलमें दुर्गन्ध नहीं थी, बड़ी सुगन्ध थी। और वायु उस सुगन्धको लेकर उनके चारों ओर दस योजनतक सारे देशको सुगन्धित कर देती थी ॥ ३३ ॥ इसी प्रकार गौ, मृग और काकादिकी वृत्तियोंको स्वीकार कर वे उन्हींके समान कभी चलते हुए, कभी खड़े-खड़े, कभी बैठे हुए और कभी लेटे-लेटे ही खाने-पीने और मल-मूत्रका त्याग करने लगते थे ॥ ३४ ॥ परीक्षित्‌ ! परमहंसोंको त्यागके आदर्शकी शिक्षा देनेके लिये इस प्रकार मोक्षपति भगवान्‌ ऋषभदेवने कई तरहकी योगचर्याओंका आचरण किया। वे निरन्तर सर्वश्रेष्ठ महान् आनन्दका अनुभव करते रहते थे। उनकी दृष्टिमें निरुपाधिकरूपसे सम्पूर्ण प्राणियोंके आत्मा अपने आत्मस्वरूप भगवान्‌ वासुदेवसे किसी प्रकारका भेद नहीं था। इसलिये उनके सभी पुरुषार्थ पूर्ण हो चुके थे। उनके पास आकाशगमन, मनोजवित्व (मनकी गतिके समान ही शरीरका भी इच्छा करते ही सर्वत्र पहुँच जाना), अन्तर्धान, परकायप्रवेश (दूसरेके शरीरमें प्रवेश करना), दूरकी बातें सुन लेना और दूरके दृश्य देख लेना आदि सब प्रकारकी सिद्धियाँ अपने-आप ही सेवा करनेको आयीं; परन्तु उन्होंने उनका मनसे आदर या ग्रहण नहीं किया ॥ ३५ ॥

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां पञ्चमस्कन्धे ऋषभदेवानुचरिते पञ्चमोऽध्यायः

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹🩷🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
    नारायण नारायण नारायण नारायण
    श्रीराधे कृष्णा भ्याम् नमः: 🙏

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण पंचम स्कन्ध - सातवां अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  पंचम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०२) भरत-चरित्र एवं वर्षायुतसहस्रपर्यन्तावसितकर्मनिर्वाणाव...