||ॐ श्री परमात्मने नम: ||
उद्धार का सुगम उपाय..(01)
सत्ययुग, त्रेता, द्वापरमें आदमी शुद्ध होते थे, पवित्र होते थे, वे विधियाँ जानते थे, उन्हें ज्ञान होता था, समझ होती थी, उनकी आयु बड़ी होती थी । कलियुगके आनेपर इन सब बातों की कमी आ गयी, इसलिये जीवों के उद्धार के लिये बहुत सुगम उपाय बता दिया ।
कलियुग केवल नाम अधारा ।
सुमिरि सुमिरि भव उतरहिं पारा ॥
संसार से पार होना चाहते हो तो नाम का जप करो ।
“जुगति बताओ जालजी राम मिलनकी बात ।
मिल जासी ओ मालजी थे राम रटो दिन रात ॥“
रात-दिन भगवान् के नाम का जप करते चले जाओ । हरिरामदास जी महाराज भी कहते हैं ‒
“जो जिव चाहे मुकुतिको तो सुमरिजे राम ।
हरिया गेले चालतां जैसे आवे गाम ॥“
जैसे रास्ते चलते-चलते गाँव पहुँच ही जाते हैं, ऐसे ही ‘राम-राम’ करते-करते भगवान् आ ही जाते हैं, भगवान् की प्राप्ति अवश्य हो जाती है । इसलिये यह ‘राम’ नाम बहुत ही सीधा और सरल साधन है ।
“रसनासे रटबो करे आठुं पहर अभंग ।
रामदास उस सन्त का राम न छाड़े संग ॥“
संत-महापुरुषों ने नाम को बहुत विशेषता से सबके लिये प्रकट कर दिया, जिससे हर कोई ले सके; परंतु लोगोंमें प्रायः एक बात हुआ करती है कि जो वस्तु ज्यादा प्रकट होती है, उसका आदर नहीं करते हैं । ‘अतिपरिचयादवज्ञा’‒अत्यधिक प्रसिद्धि हो जानेसे उसका आदर नहीं होता । नामकी अवज्ञा करने लग जाते हैं कि कोरा ‘राम-राम’ करनेसे क्या होता है ? ‘राम-राम’ तो हरेक करता है । टट्टी फिरते बच्चे भी करते रहते हैं । इसमें क्या है ! ऐसे अवज्ञा कर देते हैं ।
राम ! राम !! राम !!!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे
जय सियाराम
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