|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
ज्ञानी भक्त..(03)
दार्शनिकों का जहाँ विचार हुआ है, वहाँ शब्द में अचिन्त्य शक्ति मानी है । जीभ वागिन्द्रिय है, उससे ‘राम-राम’ ऐसे जप की क्रिया होती है, पर इस नाम-जपमें इतनी अलौकिक शक्ति है कि ज्ञानेन्द्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियों से आगे अन्तःकरण और अन्तःकरणसे आगे प्रकृति और प्रकृतिसे अतीत परमात्म तत्त्व है, उस परमात्मतत्त्व को यह नाम महाराज जना दे, ऐसी इस में शक्ति है । ‘शब्द’ में अचिन्त्य शक्ति होनेसे मोह का नाश हो जाता है । साधारण रीति से अपने अनुभव में भी देखते हैं कि कोई गहरी नींद में सोया हुआ है तो सोते समय सभी इन्द्रियाँ, मन में, मन बुद्धिमें , बुद्धि प्रकृति में अर्थात् अविद्या में लीन हो जाती हैं, तब गाढ़ नींद आती है । गाढ़ नींदमें सभी इन्द्रियाँ लीन हो जाती हैं, किसी इन्द्रिय का कोई ज्ञान नहीं; परंतु उस आदमी का नाम उच्चारण करके पुकारा जाय तो वह आदमी उस अविद्या में से जग जाता है ।
विचार करो‒नाम का सम्बन्ध तो कर्णेन्द्रिय के साथ है । कर्णेन्द्रिय पर गाढ़ नींद में इतने पर्दे आ जाते हैं; परंतु नाम में‒शब्द में वह अचिन्त्य, अलौकिक शक्ति है, जो अविद्या में लीन हुई बुद्धि, बुद्धि में लीन हुई कर्णेन्द्रिय; उस कर्णेन्द्रिय के द्वारा सुनाकर सोते हुए को जगा दे । शब्दमें इतनी शक्ति है कि जो सम्पूर्ण जीवों का मालिक परमात्म तत्त्व है, उस परमात्म तत्त्व का केवल जीभ से नाम जपने से अनुभव करा दे ।
जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ ।
नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ ॥
साधक नाम जपहि लय लाएँ ।
होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ ॥
………………. (मानस, बालकाण्ड, दोहा २२ । ३-४)
नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ ॥
साधक नाम जपहि लय लाएँ ।
होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ ॥
………………. (मानस, बालकाण्ड, दोहा २२ । ३-४)
अब दूसरे भक्तों की बात बताते हैं कि जो ‘गूढ़ गति’‒मानो सबसे गूढ़ बात को जानना चाहते हैं, जिनके यह जानने की मन में है कि हम भी उस परमात्मतत्त्व को जानें, जो कि सबसे गूढ़ तत्त्व है, उसके लिये कहा कि जीभ से नाम जप करेंगे तो उस तत्त्वको वे जान लेंगे । अब साधक के विषय में कहते हैं कि साधक अगर लौ लगाकर नाम-जप करता है तो वह सिद्ध हो जाता है । अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राकाम्य, वशिता आदि जो आठ सिद्धियाँ हैं, उन सब सिद्धियों को वह पा लेता है ।
जपहिं नामु जन आरत भारी ।
मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ॥
…………….(मानस, बालकाण्ड, दोहा २२ । ५)
मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ॥
…………….(मानस, बालकाण्ड, दोहा २२ । ५)
जो दुःखी, संतप्त होता है और संकट से छूटना चाहता है, वह आर्त होकर व्याकुलता पूर्वक नाम का जप करता है तो उसके सब संकट मिट जाते हैं । वह सुखी हो जाता है । ऐसे भगवान् के नाम की महिमा कही ।
राम ! राम !! राम !!!
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे
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