मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

हनुमान जी शिशु श्रीराम के साथ



जय सियाराम जय जय सियाराम ! जय सियाराम जय जय सियाराम !
हनुमान जी शिशु श्रीराम के साथ
पापनिवारण-ताप-निवारण, धर्म-संस्थापन एवं प्राणियों के अशेष मंगल के लिए जब जब भगवान् श्रीराम धरती पर अवतरित होते हैं, तब-तब सर्वलोकमहेश्वर शिव भी अपने प्रियतम श्रीराम के मुनिमनमोहिनी मधुर मंगलमयी लीला के दर्शनार्थ धरनी पर उपस्थित हो जाते हैं | वे अपने एक अंश से अपने प्राणप्रिय श्रीराम की लीला में सहयोग करते हैं, पर दूसरे रूप में उनकी भुवनपावनी लीला के दर्शन कर मन-ही-मन मुदित भी होते रहते हैं | उस समय उनके आनंद की सीमा नहीं रहती |
निखिल भुवन-पावन भगवान् श्रीराम महाभागा कौसल्या के सम्मुख प्रकट हुए और अवध की गलियों में उमानाथ लगे घूमने | वे अयोध्यापति दशरथ के राजद्वार पर कभी प्रभु-गुण-गायक साधु के रूप में तो कभी भिक्षा प्राप्त करने के लिए विरक्त महात्मा के वेष में दर्शन देते | कभी परमप्रभु के अवतारों की मंगलमयी कथा सुनाने प्रकांड विद्वान के रूप में राज-सदन पधारते तो कभी त्रिकालदर्शी दैवज्ञ बनकर राजा दशरथ के कमल-नयन शिशु का फलादेश बताने पहुँच जाते | इस प्रकार वे किसी न किसी बहाने घूम फिरकर श्रीराम के समीप जाते ही रहते | भगवान् शंकर कभी अपने आराध्य को अङ्क में उठा लेते, कभी हस्तरेखा देखने के बहाने उनका कोमलतम दिव्य हस्त-पद्म सहलाते और कभी अपनी जटाओं से उनके नन्हे नन्हे कमल-सरीखे लाल-लाल तलवे झाड़ते तो कभी उन देव-दुर्लभ सुकोमल अरुणोत्पल चरणों को अपने विशाल नेत्रों से स्पर्श कर परमानंद में निमग्न हो जाते | धीरे धीरे कौसल्यानंदन राज द्वार तक आने लगे |
एक बार की बात है कि पार्वती-वल्लभ मदारी के वेष में डमरू बजाते, राजद्वार पर उपस्थित हुए | उनके साथ, नाचने वाला एक अत्यंत सुन्दर बन्दर था | मदारी के साथ अवध के बालकों का समुदाय लगा हुआ था |
डमरू बजने लगा और कुछ ही देर में श्रीराम सहित चारों भाई राजद्वार पर आ पहुंचे | मदारी ने डमरू बजाया और बन्दर ने दोनों हाथ जोड़ लिए | भ्राताओं सहित राघवेन्द्र हंस पड़े | मदारी जैसे निहाल हो गया | डमरू और जोर से बजा | बन्दर ने नाचना आरम्भ कर दिया | वह ठुमुक-ठुमुक कर नाचने लगा |
भगवान् वृषभध्वज अपने एक अंश से अपने प्राणाराध्य के सम्मुख नाच रहे थे और अपने दूसरे अंश से स्वयं ही नचा रहे थे | नाचने और नचाने वाले आप ही थे –श्रीरामचरणानुरागी पार्वतीवल्लभ और बन्दर के नाच से मुग्ध होकर ताली बजाने वाले थे –सम्पूर्ण सृष्टि को नट-मरकट की भाँति नचाने वाले अखिल-भुवनपति कौसल्याकुमार भगवान् श्रीराम !
अंत में भगवान् श्रीराम प्रसन्न होगये और मचल उठे –“मुझे यह बन्दर चाहिए” !!!!
{कल्याण-श्रीहनुमान-अंक}


1 टिप्पणी:

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...