शनिवार, 2 दिसंबर 2017

“मोहमूल बहुसूलप्रद त्यागहुँ तम अभिमान | भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ||”



जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम
“मोहमूल बहुसूलप्रद त्यागहुँ तम अभिमान |
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ||”
जब हृदय में विश्वास का अभाव रहता है, तब संसार के समस्त रोगों को दूर करने वाली महौषधि देने पर भी रोगी अविश्वासी बनकर उसका पान नहीं करता और अपने विनाश का कारण स्वयं प्रस्तुत कर लेता है | रावण ने भी यही मार्ग अपनाया | भक्तिस्वरूपा सीताजी को अपनी लंका में लाकर वह अपना कल्याण दो कारणों से नहीं कर सका; पहला कारण था-- संशय और दूसरा था—अभिमान |
परोपकारी सन्त श्री हनुमान जी रावण की दशा पर दया करके असाध्य रोग से ग्रसित रावण को समझाते हैं –
“मोहमूल बहुसूलप्रद त्यागहुँ तम अभिमान |
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ||”
...........(मानस ५.२३)
‘हे रावण ! मोह ही जिसका मूल है –ऐसे अत्यधिक पीड़ा देने वाले तमरूप अभिमान का तुम त्याग कर दो और कृपा के समुद्र राघवेन्द्र भगवान् श्री राम का भजन करो |’ भला अन्धकार और सूर्य में कभी मैत्री हो सकती है !
{गीताप्रेस- श्री हनुमान अंक}


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