गुरुवार, 11 जनवरी 2018

नामका प्रभाव (01)

|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
नामका प्रभाव (01)
आगे भगवान्‌ के नाम लेने वाले भक्तों को गिनाते हैं । उन लोगों ने कैसे नाम लिया, वह भी बताते हैं ।
“नाम प्रसाद संभु अबिनासी ।
साजु अमंगल मंगल रासी ॥“
………….(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । १)
नामके प्रसादसे ही शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल वेषवाले होनेपर भी मंगलकी राशि हैं । शंकर अविनाशी किससे हुए ? तो कहते हैं ‘नाम-प्रसाद’‒नामके प्रभावसे ।
एक बार नारदजीने पार्वती के शंका पैदा कर दी कि ‘भोले बाबा से पूछो तो सही कि ये रुण्डमाला जो पहने हुए हैं, यह माला क्या है ?’ पार्वतीने पूछा‒‘महाराज ! आपने यह माला पहन रखी है यह क्या है ?’ शंकर टालने लगे । ‘क्या करोगी पूछकर ?’ पर उसने कहा‒‘नहीं महाराज ! आप बताओ ।’ तो शंकर कहने लगे‒‘बात यह है कि तुम्हारे इतने जन्म हुए हैं । तुम्हारा एक-एक मस्तक लेकर इतनी माला बना ली हमने ।’ पार्वतीको आश्चर्य हुआ । वह बोली‒‘महाराज ! मेरे तो इतने जन्म हो गये और आप वही रहे, इसमें क्या कारण है ?’ उन्होंने बताया कि हम अमरकथा जानते हैं । ‘फिर तो अमरकथा हमें भी जरूर सुनाओ ।’ हठ कर लिया ज्यादा, तो एकान्त में जाकर कहा‒‘अच्छा तुम को सुनायेंगे, पर हरेक को नहीं सुनायेंगे ।’ भगवान् शंकर सुनाने लगे, भगवान्‌ का नाम और भगवान्‌ का चरित्र । अमरकथा यही है । भगवान् शंकर ने सब पक्षियों को उड़ाने के लिये तीन बार ताली बजायी । उस समय और दूसरे सभी पक्षी उड़ गये, पर एक सड़ा गला तोते का अण्डा पड़ा था, उसने इस कथा को सुन लिया । पार्वती ने हठ तो कर लिया; परंतु उसे नींद आ गयी ।
एक तो प्रेम से सुनने की स्वयं की उत्कण्ठा होती है और एक दूसरे की प्रेरणा से इच्छा की जाती है । पार्वती ने नारदजी की प्रेरणा से इच्छा की थी, इस कारण नींद आ गयी । जिसके स्वयं की लगन होती है, उसको नींद नहीं आती । पार्वती को नींद आ गयी, तोता सुनते-सुनते हाँ-हाँ कहने लगा । भगवान् शंकर मस्त होकर भगवान्‌ का चरित्र कहे जा रहे हैं और उसी में मस्त हो रहे हैं । आँख खोलकर जब देखा तो तोता बैठा है और सुन रहा है । ‘अरे ! इसने चोरी से नाम सुन लिया !’ वह वहाँ से उड़ा, शंकर भगवान् पीछे भागे । त्रिशूल हाथ में लिये हुए पीछे-पीछे गये । उस समय वेदव्यास जी की स्त्री सिर गुँथा रही थी । उसको भी नींद आ रही थी थोड़ी । उसका मुख खुला था । वह मुखके भीतर प्रवेश कर गया । वे ही शुकदेव हुए शुकदेव मुनि जो राजा परीक्षित्‌ को मुक्ति दिलाने वाले, भागवतसप्ताह सुनाने वाले हुए । वे शुकदेव जी माँ के पेट में ही नाम-जपमें लग गये । शुकदेव मुनि इस तरह से श्रेष्ठ हुए । पार्वती को अमरकथा सुनायी, जिससे पार्वती भी अमर हो गयी ।
राम ! राम !! राम !!!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे


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