|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
नाम में अरुचिका कारण
वाल्मीकिजी को अल्पप्राणवाला नाम भी क्यों नहीं आया ? कारण क्या था ? ध्यान दें ! ‘राम’ नाम उच्चारण करने में सुगम है; परन्तु जिसके पाप अधिक हैं, उस पुरुष द्वारा नाम-उच्चारण कठिन हो जाता है । एक कहावत है—
मजाल क्या है जीव की, जो राम-नाम लेवे ।
पाप देवे थाप की, जो मुण्डो फोर देवे ॥
पाप देवे थाप की, जो मुण्डो फोर देवे ॥
जिनका अल्प पुण्य होता है, वे ‘राम’ नाम ले नहीं सकते । श्रीमद्भगवद्गीतामें आया है—
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥
.............(७ । २८)
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥
.............(७ । २८)
जिनके पाप नष्ट हो गये हैं, वे ही दृढ़व्रत होकर भगवान्के भजनमें लग सकते हैं ।
राम ! राम !! राम !!!
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे
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