बुधवार, 31 जनवरी 2018

कलिजुग सम जुग आन नहिं




कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास।
गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास।।

(यदि मनुष्य विश्वास करे, तो कलियुग के समान दूसरा युग नहीं है। क्योंकि इस युगमें श्रीरामजीके निर्मल गुणोंसमूहों को गा-गाकर मनुष्य बिना ही परिश्रम संसार रूपी समुद्र से तर जाता है )



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - छब्बीसवां अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३) राजा पुरञ्जनका शिकार खेलने वनमें जाना और रानीका ...