गुरुवार, 13 सितंबर 2018

|श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.०९)

|श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०९)
साधन चतुष्टय
तद्वैराग्यं जुगुप्सा या दर्शन-श्रवणादिभि: ||२१||
देहादिब्रह्मपर्यन्ते ह्यनित्ये भोगवस्तुनि |
(दर्शन और श्रवणादि के द्वारा देह से लेकर ब्रह्मलोकपर्यन्त सम्पूर्ण अनित्य भोग पदार्थों में जो घृणाबुद्धि है वही “ वैराग्य” है)
विरज्य विषयव्राताद्दोषदृष्ट्या मुहुर्मुहु: ||२२||
स्वलक्ष्ये नियतावस्था मनस: शम उच्यते |
(बारम्बार दोष-दृष्टि करने से विषय-समूह से विरक्त होकर चित्त का अपने लक्ष्य में स्थिर हो जाना ही “शम” है )
विषयेभ्य: परावर्त्य स्थापनं स्वस्वगोलके ||२३||
उभयेषामिन्द्रियाणां स दम: परिकीर्तित: |
बाह्यानालंबनं वृत्तेरेषोपरतिरुत्तमा ||२४||
(कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय दोनों को उनके विषयों से खींचकर अपने-अपने गोलकों में स्थित करना “दम” कहलाता है | वृत्तिका बाह्य विषयों का आश्रय न लेना यही उत्तम “उपरति” है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


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