||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.११)
साधन चतुष्टय
सर्वदा स्थापनं बुद्धे: शुद्धे ब्रह्मणि सर्वथा |
तत्समाधानमित्युक्तं न् तु चित्तस्य लालनम् ||२७||
(अपनी बुद्धि को सब प्रकार शुद्ध ब्रह्म में ही सदा स्थिर रखना इसी को “समाधान” कहते हैं | चित्त की इच्छापूर्ति का नाम समाधान नहीं है)
अहंकारादिदेहान्तान्बन्धानज ्ञानकल्पितान् |
स्वस्वरूपावबोधेन मोक्तुमिच्छा मुमुक्षुता ||२८||
(अहंकार से लेकर देहपर्यन्त जितने अज्ञानकल्पित बंधन हैं, उनको अपने स्वरूप के ज्ञान द्वारा त्यागने की इच्छा “मुमुक्षुता” है)
मन्दमध्यमरूपापि वैराग्येण शमादिना |
प्रसादेन गुरो: सेयं प्रवृद्धा सूयते फलम् ||२९||
(वह मुमुक्षता मंद और मध्यम भी हो तो भी वैराग्य तथा शमादि षट्-संपत्ति और गुरुकृपा से बढ़कर फल देती है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
विवेक चूडामणि (पोस्ट.११)
साधन चतुष्टय
सर्वदा स्थापनं बुद्धे: शुद्धे ब्रह्मणि सर्वथा |
तत्समाधानमित्युक्तं न् तु चित्तस्य लालनम् ||२७||
(अपनी बुद्धि को सब प्रकार शुद्ध ब्रह्म में ही सदा स्थिर रखना इसी को “समाधान” कहते हैं | चित्त की इच्छापूर्ति का नाम समाधान नहीं है)
अहंकारादिदेहान्तान्बन्धानज
स्वस्वरूपावबोधेन मोक्तुमिच्छा मुमुक्षुता ||२८||
(अहंकार से लेकर देहपर्यन्त जितने अज्ञानकल्पित बंधन हैं, उनको अपने स्वरूप के ज्ञान द्वारा त्यागने की इच्छा “मुमुक्षुता” है)
मन्दमध्यमरूपापि वैराग्येण शमादिना |
प्रसादेन गुरो: सेयं प्रवृद्धा सूयते फलम् ||२९||
(वह मुमुक्षता मंद और मध्यम भी हो तो भी वैराग्य तथा शमादि षट्-संपत्ति और गुरुकृपा से बढ़कर फल देती है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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