रविवार, 16 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.१२)



||श्री परमात्मने नम: ||

विवेक चूडामणि (पोस्ट.१२)

साधन चतुष्टय

वैराग्यं च मुमुक्षुत्वं तीव्रं यस्य तु विद्यते |
तस्मिन्नेवार्थवन्त: स्यु: फलवन्त: शमादय: ||३०||

(जिस पुरुष में वैराग्य और मुमुक्षुत्व तीव्र होते हैं, उसी में शमादि चरितार्थ और सफल होते हैं )

एतयोर्मन्दता यत्र विरक्तत्वमुमुक्षयो : |
मरौ   सलिलवत्तत्र समादेर्भासमात्रता ||३१||

(जहां इन वैराग्य और मुमुक्षुत्व की मन्दता है, वहाँ शमादि का भी मरुस्थल में जल-प्रतीति के समान आभासमात्र ही समझना चाहिये)

मोक्षकारणसामग्र्यां  भक्तिरेव गरीयसी |
स्वस्वरूपानुसंधानं भक्तिरित्यभिधीयते ||३२||
स्वात्मतत्वानुसन्धानं भक्तिरित्यपरे जगु:||

(मुक्ति की कारणरूप सामग्री में भक्ति ही सबसे बढ़कर है और अपने वास्तविक स्वरूप का अनुसंधान करना ही “भक्ति” कहलाता है | कोई कोई “स्वात्म-तत्त्व का अनुसंधान  ही भक्ति है”--ऐसा कहते हैं)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे



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