||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक
चूडामणि (पोस्ट.१२)
साधन
चतुष्टय
वैराग्यं
च मुमुक्षुत्वं तीव्रं यस्य तु विद्यते |
तस्मिन्नेवार्थवन्त:
स्यु: फलवन्त: शमादय: ||३०||
(जिस
पुरुष में वैराग्य और मुमुक्षुत्व तीव्र होते हैं, उसी में शमादि चरितार्थ और सफल
होते हैं )
एतयोर्मन्दता
यत्र विरक्तत्वमुमुक्षयो : |
मरौ सलिलवत्तत्र समादेर्भासमात्रता ||३१||
(जहां
इन वैराग्य और मुमुक्षुत्व की मन्दता है, वहाँ शमादि का भी मरुस्थल में जल-प्रतीति
के समान आभासमात्र ही समझना चाहिये)
मोक्षकारणसामग्र्यां भक्तिरेव गरीयसी |
स्वस्वरूपानुसंधानं
भक्तिरित्यभिधीयते ||३२||
स्वात्मतत्वानुसन्धानं
भक्तिरित्यपरे जगु:||
(मुक्ति
की कारणरूप सामग्री में भक्ति ही सबसे बढ़कर है और अपने वास्तविक स्वरूप का
अनुसंधान करना ही “भक्ति” कहलाता है | कोई कोई “स्वात्म-तत्त्व का अनुसंधान ही भक्ति है”--ऐसा कहते हैं)
नारायण
! नारायण !!
शेष
आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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