|श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.१४)
साधन चतुष्टय
शान्ता महान्तो निवसन्ति संतो
वसन्तवल्लोकहितं चरन्त: |
तीर्णा: स्वयं भीमभवार्णवं जना-
नहेतुनान्यानपि तारयन्त: || ३९||
वसन्तवल्लोकहितं चरन्त: |
तीर्णा: स्वयं भीमभवार्णवं जना-
नहेतुनान्यानपि तारयन्त: || ३९||
(भयंकर संसार-सागर से स्वयं उत्तीर्ण हुए और अन्य जनों को भी बिना कारण ही तारते तथा लोकहित का आचरण करते अति शांत महापुरुष ऋतुराज वसंत के समान निवास करते हैं)
अयं स्वभाव: स्वत एव यत्पर-
श्रमापनोदप्रवणं महात्मनाम् |
सुधांशुरेष स्वयमर्ककर्कश –
प्रभाभितप्तामवति क्षितिं किल ||४०||
श्रमापनोदप्रवणं महात्मनाम् |
सुधांशुरेष स्वयमर्ककर्कश –
प्रभाभितप्तामवति क्षितिं किल ||४०||
(महात्माओं का यह स्वभाव ही है कि वे स्वत: ही दूसरों का श्रम दूर करने में प्रवृत्त होते हैं | सूर्य के प्रचण्ड तेज से सन्तप्त पृथ्वीतल को चन्द्रदेव स्वयं ही शान्त कर देते हैं)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें