||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.१५)
साधन चतुष्टय
ब्रह्मानन्दरसानुभूतिकलितै: पूतैःसुशीतै:सितै-
र्युष्मदवाक्कलशोज्झितैः श्रुतिसुखैर्वाक्यामृतै: सेचय |
संतप्तं भवतापदावदहनज्ज्वालाभिरेनं प्रभो
धन्यास्ते भवदीक्षणक्षणगाते: पात्रीकृता:स्वीकृता: ||४१||
र्युष्मदवाक्कलशोज्झितैः श्रुतिसुखैर्वाक्यामृतै: सेचय |
संतप्तं भवतापदावदहनज्ज्वालाभिरेनं प्रभो
धन्यास्ते भवदीक्षणक्षणगाते: पात्रीकृता:स्वीकृता: ||४१||
(हे प्रभो ! प्रचण्ड संसार-दावानल की ज्वाला से तपे हुए इस दीन- शरणापन्न को आप अपने ब्रह्मानन्दरसानुभव से युक्त परमपुनीत , सुशीतल,निर्मल औरर वाक्-रूपी स्वर्णकलश से निकले हुए श्रवणसुखद वचनामृतों से सींचिये [अर्थात् इसके ताप को शान्त कीजिये] | वे धन्य हैं जो आपके एक क्षण के करुणामय दृष्टिपथ के पात्र होकर अपना लिए गए हैं)
कथं तरेयं भवसिन्धुमेतं
का वा गतिर्मे कतमोऽस्त्युपाय: |
जाने न किञ्चित्कृपयाव मां भो
संसारदु:खक्षतिमातनुष्व ||४२||
का वा गतिर्मे कतमोऽस्त्युपाय: |
जाने न किञ्चित्कृपयाव मां भो
संसारदु:खक्षतिमातनुष्व ||४२||
( ‘मैं इस संसार-समुद्र को कैसे तरूंगा? मेरी क्या गति होगी ? उसका क्या उपाय है ?’ - यह मैं कुछ नहीं जानता | प्रभो ! कृपया मेरी रक्षा कीजिये और मेरे संसार-दु:ख के सही का आयोजन कीजिये)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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