|श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.२२)
प्रश्न विचार
यस्त्वयाद्य कृतः प्रश्नौ वरीयाञ्छास्त्रविन्मतः ।
सूत्रप्रायो निगूढार्थो ज्ञातव्यश्च मुमुक्षुभिः ॥ ६९ ॥
सूत्रप्रायो निगूढार्थो ज्ञातव्यश्च मुमुक्षुभिः ॥ ६९ ॥
([गुरु कहते हैं कि] तूने आज जो प्रश्न किया है, शास्त्रज्ञ जन उसको बहुत श्रेष्ठ मानते हैं | वह परे: सूत्ररूप (संक्षिप्त) है, तो भी गंभीर अर्थयुक्त और मुमुक्षुओं के जानने योग्य है)
श्रृणुष्वावहितो विद्वन्यन्मया समुदीर्यते ।
तदेतच्छ्वणात्सद्यो भवबन्धाद्विमोक्ष्यसे ॥ ७० ॥
तदेतच्छ्वणात्सद्यो भवबन्धाद्विमोक्ष्यसे ॥ ७० ॥
(हे विद्वन् ! जो मैं कहता हूँ,सावधान होकर सुन ;उसको सुनाने से तू शीघ्र ही भवबन्धन से छूट जाएगा)
मोक्षस्य हेतुः प्रथमो निगद्यते
वैराग्यमत्यन्तमनित्यवस्तुषु ।
ततः शमश्चापि दमस्तितिक्षा
न्यासः प्रसक्ताखिलकर्मणां भृशम् ॥ ७१ ॥
ततः श्रुतिस्तन्मननं सतत्त्व-
ध्यानं चिरं चित्यनिरन्तरं मुनेः ।
ततोऽविकल्पं परमेत्य विद्वा-
निहैव निर्वाणसुखं समृच्छति ॥ ७२ ॥
वैराग्यमत्यन्तमनित्यवस्तुषु ।
ततः शमश्चापि दमस्तितिक्षा
न्यासः प्रसक्ताखिलकर्मणां भृशम् ॥ ७१ ॥
ततः श्रुतिस्तन्मननं सतत्त्व-
ध्यानं चिरं चित्यनिरन्तरं मुनेः ।
ततोऽविकल्पं परमेत्य विद्वा-
निहैव निर्वाणसुखं समृच्छति ॥ ७२ ॥
(मोक्ष का प्रथम हेतु अनित्य वस्तुओं में अत्यन्त वैराग्य होना कहा है, तदनंतर शम, दम,तितिक्षा और सम्पूर्ण आसक्तियुक्त कर्मों का सर्वथा त्याग है | तदुपरांत मुनि को श्रवण, मनन और चिरकाल तक नित्य निरन्तर आत्म-तत्त्व का अध्यान करना चाहिए | तब वह विद्वान परम निर्विकल्पावस्था को प्राप्त होकर निर्वाण सुख को पाता है)
यद्वोद्धव्यं तवेदानीमात्मानात्मविवेचनम् ।
तदुच्यते मया सम्यक् श्रुत्वात्मन्यवधारय ॥ ७३ ॥
तदुच्यते मया सम्यक् श्रुत्वात्मन्यवधारय ॥ ७३ ॥
(जो आत्मानात्मविवेक अब तुझे जानना चाहिए वह मैं समझाता हूँ, उसे तू भलीभाँति सुनकर अपने चित्त में स्थिर कर)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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