मंगलवार, 25 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.21)

||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.21)
अपरोक्षानुभव की आवश्यकता
न गच्छति विना पानं व्याधिरौषधशब्दत: |
विनापरोक्षानुभवं ब्रह्मशब्दैर्न मुच्यते ||६४||
(औषध को बिना पिए केवल औषध – शब्द के उच्चारणमात्र से रोग नहीं जाता, इसी प्रकार अपरोक्षानुभव बिना, केवल ”ब्रह्म, ब्रह्म” कहने से कोई मुक्त नहीं हो सकता)
अकृत्वा दृश्यविलयमज्ञात्वा तत्त्वमात्मन: |
बाह्यशब्दै: कुतो मुक्तिरुक्तिमात्रफलैर्नृणाम् ||६५||
(बिना दृश्य-प्रपञ्च किये और आत्मतत्त्व को जाने,केवल बाह्य शब्दों से,जिनका फल केवल उच्चारणमात्र ही है, मनुष्यों की मुक्ति कैसे हो सकती है)
अकृत्वा शत्रुसंहारमगत्वाखिलभूश्रियम् |
राजाहमिति शब्दान्नो राजा भवतुमर्हति ||६६||
( बिना शत्रुओं का वध किये और बिना सम्पूर्ण पृथिवीमण्डल का ऐश्वर्य प्राप्त किये, “मैं राजा हूँ”-ऐसा कहने से ही कोई राजा नहीं हो जाता)
आप्तोक्तिं खननं तथोपरिशिलाद्युत्कर्षणं स्वीकृतिं
निक्षेप: समपेक्षते न हि बही: शब्दैस्तु निर्गच्छति |
तद्वद् ब्रह्मविदोपदेशमननध्यानादिभिर्लभ्यते
मायाकार्यतिरोहितं स्वममलं तत्त्वं न् दुर्युक्तिभि : ||६७||
( पृथ्वी में गडे हुए धन को प्राप्त करने के किये जैसे प्रथम किसी विश्वसनीय पुरुष के कथन की और फिर पृथ्वी को खोदने, कंकड-पत्थर आदि को हटाने तथा प्राप्त हुए धन को स्वीकार करने की आवश्यकता होती है- कोरी बातों से वह बाहर नहीं निकलता, उसी प्रकार समस्त मायिक प्रपंच से शून्य निर्मल आत्मतत्त्व भी ब्रह्मविद् गुरु के उपदेश तथा उसके मनन और निदिध्यासनादि से ही प्राप्त होता है, थोथी बातों से नहीं)
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन भवबन्धविमुक्तये |
स्वैरेव यत्न: कर्तव्यो रोगादाविव पण्डितै : ||६८||
( इस लिए रोग आदि के समान भव-बन्ध की निवृत्ति के लिए विद्वान् को अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर स्वयं ही प्रयत्न करना चाहिए)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


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