सोमवार, 24 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.20)

||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.20)
आत्मज्ञान का महत्त्व
न योगेन न सांख्येन कर्मणा नो न विद्यया |
ब्रह्मात्वैकबोधेन मोक्ष: सिद्धयति नान्यथा || ५८||
(मोक्ष न योग से सिद्ध होता है, न सांख्य से, न कर्म से न विद्या से | वह केवल ब्रह्मात्यैक्य-बोध [ ब्रह्म और आत्मा की एकता के ज्ञान] से ही होता है और किसी प्रकार से नहीं)
वीणाया रूपसौन्दर्यं तंत्रीवादनसौष्ठवम् |
प्रजारञ्जन्मात्रं तन्न साम्राज्याय कल्पते ||५९||
वाग्वैखरी शब्दझरी शास्त्रव्याख्यानकौशलम् |
वैदुष्यं विदुषां तद्वद्भुक्तये न तु मुक्तये ||६०||
(जिस प्रकार वीणा का रूप-लावण्य तथा तंत्री को सुन्दर बजाने का ढंग मनुष्यों के मनोरंजन का ही कारण होता है, उससे कुछ साम्राज्य की प्राप्ति नहीं हो जाती; उसी प्रकार विद्ववानों की वाणी की कुशलता, शब्दों की धारावाहिकता, शास्त्र-व्याख्यान की कुशलता और विद्वत्ता भोग ही का कारण हो सकती है, मोक्ष का नहीं)
अविज्ञाते परे तत्त्वे शास्त्राधीतिस्तु निष्फला |
विज्ञातेऽपि परे तत्त्वे शास्त्राधीतिस्तु निष्फला ||६१||
( परमतत्त्व को यदि न जाना तो शास्त्राध्ययन निष्फल (व्यर्थ) ही है और यदि परमतत्त्व को जान लिया तो भी शास्त्राध्ययन निष्फल [अनावश्यक] ही है)
शब्दजालं महारण्यं चित्तभ्रमणकारणम् |
अत: प्रयत्नाज्ज्ञातव्यं तत्त्वज्ञातत्त्वमातन: ||६२||
(शब्दजाल तो चित्त को भटकाने वाला महान वन है, इस लिए किन्हीं तत्त्वज्ञानी महात्मा से प्रयत्नपूर्वक आत्मतत्त्व को जानना चाहिए)
अज्ञानसर्पदष्टस्य ब्रह्मज्ञानौषधं विना |
किमु वेदैश्चशास्त्रैश्च किमु मंत्री किमौषधैः ||६३||
( अज्ञानरूपी सर्प से डसे हुए को ब्रह्मज्ञानरूपी औषधी के बिना वेद से शास्त्र से, मन्त्र से और औषध से क्या लाभ ?)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


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