||श्री हरि ||
भगवान् शंकराचार्य और विवेक चूडामणि (पोस्ट.०४)
विवेक चूडामणि का संक्षिप्त परिचय
श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा रचित यद्यपि छोटे बड़े सैकड़ों ग्रन्थ हैं , पर विवेक-चूडामणि साधना और संक्षिप्त में सम्यक् ज्ञानोपलाब्धि की दृष्टि से सर्वोत्तम है | इसके अनुसार मनुष्य-जन्म पाकर संसार को विलोप करते हुए सर्वत्र शुद्ध भगवद्दृष्टि प्राप्त कर सर्वथा जीवन-मुक्त होकर कैवल्य-प्राप्ति ही सर्वोत्तम सिद्धि है | इसी बात को उन्होंने गीताभाष्य,ब्रह्मसूत्रभाष्य आदि में विस्तार से प्रतिपादित किया है | पर आचार्य कहते हैं कि यह अवस्था अनंत जन्मों के पुण्य के बिना प्राप्त नहीं होती –
“ मुक्तिर्नो शतकोटिजन्मसु कृतै: पुन्यैर्विना लभ्यते ||”...(वि०च०म०२)
यही बात गीता में भगवान् कृष्ण भी कहते हैं –
“अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ||”....(गीता६.४५)
“अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ||”....(गीता६.४५)
साधना की दृष्टि से भगवत्कृपा के द्वारा मोक्ष की इच्छा और तदर्थ प्रयत्न और सतसंग की प्राप्ति ये तीन दुर्लभ वस्तुएँ हैं | इनसे विवेक की प्राप्ति होकर जीवन्मुक्ति की उपलब्धि होती है | आचार्य का वचन है—
दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम् |
मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रय :||…..(वि.चू.म.३)
मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रय :||…..(वि.चू.म.३)
गोस्वामी तुलसीदास जी की रचनाओं पर इनका स्पष्ट प्रभाव दीखता है --
बिनु सत्संग बिबेक न होई | राम कृपा बिनु सुलभ न होई ||
बिनु सत्संग भगति नहिं होई | ते तब मिलहिं द्रवै जब सोई ||
सत्संगति मुद मंगलमूला | सोइ फल सिधि सब साधन फूला ||
बड़े भाग मानुष तन पावा | सुर दुर्लभ पुरान श्रुति गावा ||
बड़े भाग पाइय सत्संगा | बिनहिं प्रयास होइ भव भंगा ||
बिनु सत्संग भगति नहिं होई | ते तब मिलहिं द्रवै जब सोई ||
सत्संगति मुद मंगलमूला | सोइ फल सिधि सब साधन फूला ||
बड़े भाग मानुष तन पावा | सुर दुर्लभ पुरान श्रुति गावा ||
बड़े भाग पाइय सत्संगा | बिनहिं प्रयास होइ भव भंगा ||
लगता तो यहाँ तक है कि—“वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्”—इत्यादि में निदर्शनालंकार से गोस्वामी जी ने शंकरावतार शंकराचार्य जी की ही वन्दना की है और उनके समग्र साहित्य पर आचार्य का महान प्रभाव है और इन्हीं कारणों से भाषा हिन्दी होने, भाव गंभीर होने के कारण मानस का विश्व में सर्वाधिक प्रचार हो गया |
विवेक-चूडामणि में नित्य-समाधि के लिए वैराग्य को ही सर्वोत्कृष्ट साधन माना गया है | आचार्य कहते हैं ---“अत्यन्तवैराग्यवत: समाधि:” अर्थात् अत्यंत विरक्त को तत्काल समाधि सिद्ध होती है | गीता में भी यही भाव व्यक्त हुआ है –
“तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ||
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला |
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ||”...(गीता २.५२-५३)
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला |
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ||”...(गीता २.५२-५३)
“विवेक चूडामणि” की सारी उपयोगिताओं को हृदयंगम करने के लिए ग्रन्थ का पर्यावलोकन आवश्यक है | उसे शनैः शनैः आप रसपूर्वक मनन करते हुए पूरा लाभ उठाएं | यही निवेदन है |
नारायण ! नारायण !!
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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