||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०१)
मंगलाचरण
सर्ववेदान्तसिद्धान्तगोचरं तमगोचरम् |
गोविन्दं परमानन्दं सद्गुरुं प्रणतोऽस्म्यहम् ||१||
गोविन्दं परमानन्दं सद्गुरुं प्रणतोऽस्म्यहम् ||१||
( जो अज्ञेय होकर भी सम्पूर्ण वेदान्त के सिद्धांत-वाक्यों से जाने जाते हैं, उन परमानन्दस्वरूप सद्गुरुदेव श्री गोविन्द को मैं प्रणाम करता हूँ )
ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व
जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमत: पुंस्त्वं ततो विप्रता
तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम् |
आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थिति-
र्मुक्तिर्नो शत्कोटिजन्मसु कृतै: पुन्यैर्विना लभ्यते || २||
तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम् |
आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थिति-
र्मुक्तिर्नो शत्कोटिजन्मसु कृतै: पुन्यैर्विना लभ्यते || २||
( जीवों को प्रथम तो नरजन्म ही दुर्लभ है, उससे भी पुरुषत्व और उस से भी ब्राह्मणत्व मिलना कठिन है; ब्राह्मण होने से भी वैदिक धर्म का अनुगामी होना और उस से भी विद्वत्ता का होना कठिन है | [ यह सब कुछ होने पर भी] आत्मा और अनात्मा का विवेक, सम्यक् अनुभव , ब्रह्मात्मभाव से स्थिति और मुक्ति- ये तो करोड़ों जन्मों में किये हुए शुभ कर्मों के परिपाक के बिना प्राप्त हो ही नहीं सकते )
दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम् |
मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रय : ||३||
मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रय : ||३||
(भगवत्कृपा ही जिनकी प्राप्ति का कारण है वे मनुष्यत्व, मुमुक्षत्व (मुक्त होने की इच्छा) और महान पुरुषों का संग- ये तीनों ही दुर्लभ हैं)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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